उत्तराखंड: फिर तबाही की कगार पर खड़ी है केदारघाटी, यूसैक की रिपोर्ट में डराने वाला खुलासा
केदारनाथ यात्रा Kedarnath yatra मार्ग को लेकर उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने कुछ बड़ी बातें बताई हैं। इन बातों पर गौर करना भी जरूरी है।
Mar 7 2020 9:32AM, Writer:कोमल नेगी
केदारनाथ यात्रा Kedarnath yatra शुरू होने वाली है। 29 अप्रैल का दिन तय हुआ है, एक तरफ प्रशासन यहां यात्रा की तैयारियों में जुटा है तो वहीं यूसैक ने केदारनाथ यात्रा मार्ग को लेकर खतरनाक संकेत दिए हैं। यूसैक इसरो की नोडल एजेंसी है। इस एजेंसी ने केदारनाथ के नए मार्ग पर एवलांच का खतरा बताया है। बता दें कि साल 2013 में केदारनाथ यात्रा का पारंपरिक यात्रा मार्ग तबाह हो गया था। बाद में नया रास्ता तैयार किया गया। केंद्र सरकार इस क्षेत्र में पुनर्निर्माण कार्य करा रही है। पीएम मोदी इन निर्माण कार्यों की खुद मॉनिटरिंग कर रहे हैं। अब यहां जो नया Kedarnath yatra मार्ग बनाया गया है, उसकी सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने इस मार्ग पर एवलांच यानि हिमस्खलन का खतरा बताया है। यूसैक के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने इस संबंध में भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. के.विजय राघवन के सामने एक प्रजेंटेशन रिपोर्ट पेश की। जिसमें बताया कि केदारपुरी क्षेत्र में सात बड़े एवलांच जोन हैं। गौरीकुंड क्षेत्र भी सुरक्षित नहीं है, यहां भी कई छोटे एवलांच जोन हैं। डॉ. बिष्ट ने और क्या कहा, ये भी बताते हैं। आगे पढ़िए
यूसैक ने बताई बड़ी बात
1
/
यूसैक के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट का कहना है कि पारंपरिक यात्रा मार्ग नदी के दायीं तरफ था। नया मार्ग भी इसी तरफ बनाया जाना चाहिए था, क्योंकि इस क्षेत्र में सख्त चट्टानें हैं। पर ऐसा नहीं किया गया। वैज्ञानिकों ने अब दायीं तरफ रोपवे बनाने का सुझाव दिया है। आपदा के वक्त उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी। जिसने हड़बड़ी में निर्माण कार्य शुरू करा दिया था। जिस जमीन पर मार्ग बना वो कच्ची है। इसे बनाने के लिए एवलांच के साथ आए मलबे का इस्तेमाल किया गया। वैज्ञानिकों ने आदि शंकराचार्य के समाधि स्थल और मंदिर के पीछे बनी सुरक्षा दीवार पर भी सवाल उठाए।
गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा
2
/
उन्होंने कहा कि दीवार बनाते वक्त गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया। दीवार 90 फीट लंबी और करीब 15 फीट ऊंची है, लेकिन इसकी नींव 1.5 मीटर से ज्यादा नहीं है। केदारपुरी क्षेत्र में 160 मीटर ऊंचे मलबे का ढेर है। जो कभी भी नीचे आ सकता है और क्षेत्र को तबाह कर सकता है। यहां गतिविधियों को नियंत्रित करना जरूरी है। समय रहते सुरक्षात्मक कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वक्त में केदारपुरी क्षेत्र को भीषण तबाही का सामना करना पड़ सकता है।