भवितव्यं भवतीव: मध्य प्रदेश में उत्तराखंड दुहराये जाने पर-किशोर उपाध्याय
इसी घनघोर अविश्वास व तूफ़ान से आने वाली शान्ति के बीच मैं विधान सभा सत्र आरम्भ होने से एक दिन पहले श्री विजय बहुगुणा से उनके घर पर मिलने गया-पढ़िए कांग्रेस नेता किशोर उपाध्याय का लेख
Mar 14 2020 7:56PM, Writer:आदिशा
मैं हरिद्वार में 28 मार्च,2016 को आयोजित की जाने वाली “ग्राम कांग्रेस, बाज़ार कांग्रेस” के स्थान के चयन में व्यस्त था, जिसमें राहुल गाँधी जी ने लगभग 20,000 कांग्रेस कार्यकर्त्ताओं के साथ सीधा संवाद करना था, तभी दिल्ली से आये एक फ़ोन ने मुझे बेचैन कर दिया। फ़ोन को हल्के से नहीं लिया जा सकता था, क्योंकि फ़ोन करने वाला मेरा मित्र वरिष्ठ गुप्तचर अधिकारी था, उन्होंने मुझे बताया कि इस विधान सभा सत्र में आपकी सरकार चली जायेगी और आपके ही मित्र भाजपा के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बन जायेंगे।यही बात मुझे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के एक महामन्त्री भी लगभग एक माह पूर्व बता चुके थे और कौन-कौन विधायक जा रहे हैं, दोनों सज्जनों ने नाम भी बताये। मैं हरिद्वार का काम जल्दी-जल्दी निपटाकर देहरादून आया और तत्कालीन मुख्यमंत्री
हरीश रावत जी को सारी बात बतायी। श्री रावत असमंजस में थे, पर जब मैंने कहा कि आप व सतपाल महाराज जी पहले दिन आपस में दिल्ली में हंसी-ख़ुशी के ठाहक़ों के साथ गले मिले और दूसरे दिन वे पार्टी छोड़ कर भाजपा में चले गये तो वे गम्भीर हुये और शायद उन्होंने अपनी तरफ से भी अपनी मशीनरी को activate किया होगा, लेकिन उनकी मशीनरी अपनी अकर्मण्यता या दिल्ली के दबाब में उनको सही सूचना नहीं दे पायी।
इसी घनघोर अविश्वास व तूफ़ान से आने वाली शान्ति के बीच मैं विधान सभा सत्र आरम्भ होने से एक दिन पहले श्री विजय बहुगुणा से उनके घर पर मिलने गया, मैंने सोचा शायद वे कुछ कहेंगे, उनके चेहरे को पढ़ने की कोशिश की, मुझे लगा वे अत्यन्त किंकर्त्तव्य विमूढ़ता की मन:स्थिति में हैं।मैंने हरीश रावत जी से विचार-विमर्श किया और कहा की दाल में काला ही नहीं, मुझे तो सारी दाल काली लग रही है।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के गठन में श्री बहुगुणा ने मुझे जो सुझाव दिये, मैंने उन सुझावों को माना और उन सबको संगठन में जगह दी, उनका सुझाव था कि श्री साकेत बहुगुणा को प्रदेश कार्य समिति में जगह दी जाय, मैंने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधीजी से अनुमति बाद में ली, उन्हें उसी दिन कार्यसमिति में ले लिया।
17 मार्च की रात लगभग 2:00 बजे मेरे मोबाईल की घण्टी बजी, दूसरी तरफ मुख्यमंत्री जी थे, उन्होंने एक विधायक का नाम लिया और कहा कि मैंने भी उनसे बात की है, उन्होंने अपने बच्चों की क़सम खायी है और कहा कि आप मेरे भाई हैं, हम अपने भाई को कैसे धोखा दे सकते हैं? लेकिन मुझे संशय हो रहा है, अध्यक्षजी! आप बात करो या रात में ही उनसे मिल लो।तब तक रात के ढाई बज गये। अब मुझे पहले थोड़ा संकोच हुआ कि रात को ढाई बजे फ़ोन करूँ या न करूँ, लेकिन एक सरकार की जीवन का सवाल था।मैंने साहस कर फ़ोन मिला दिया..
क्रमश आगे