image: Research about buransh in uttarakhand

पहाड़ के जंगलों से बुरांस गायब, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता..ये शुभ संकेत नहीं है

चमोली के जंगलों में मार्च तक लगने वाली बुरांस (burans flower) के फूलों की भरमार इस बार देखने को नहीं मिल रही है। फरवरी या मार्च तक प्रचुर मात्रा में खिलने वाले बुरांस के फूलों की झलक अबतक देखने को नहीं मिली है।
Mar 21 2020 8:29PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल

बुरांस (burans flower) के फूल उत्तराखंड वालों के सबसे प्रिय फूल होते हैं। हर साल इसके जूस का हम सबको बेसब्री से इंतज़ार रहता है। मार्च तक हमारे चमोली के पहाड़ों के जंगलों में बुरांस की लालिमा से चार चांद लग जाते हैं। मगर इस बार बुराँस के फूलों की झलक भी जंगलो ने देखने को नहीं मिल रही है। कारण है जलवायु परिवर्तन। इस साल सर्दी से सब परेशान रहे। चाहे वो बेसमय की बर्फबारी हो या कड़ाके की ठंड। मौसम ने इस बार जम कर लोगों को परेशान रखा। वनस्पति विज्ञानियों के मुताबिक इसी कारण बुरांस के फूलों पर भी असर पड़ा। उन्होंने बताया कि नवम्बर और दिसम्बर माह में बुरांस की कलियां बनती हैं और फ़रवरी और मार्च में उत्तराखंड के जंगलों में इसकी भरमार हो जाती है। मगर मौसम के प्रतिकूल होने के कारण इस बार बुरांस के पेड़ो पर कोंपले भी नहीं खिल पाई हैं। इस साल सर्दी से सब परेशान रहे। चाहे वो बेसमय की बर्फबारी हो या कड़ाके की ठंड। मौसम ने इस बार जम कर लोगों को परेशान रखा। वनस्पति विज्ञानियों के मुताबिक इन्हीं कारण बुरांस के फूलों पर भी असर पड़ा। उन्होंने बताया कि नवम्बर और दिसम्बर माह में बुरांस की कलियां बनती हैं और फ़रवरी और मार्च में उत्तराखंड के जंगलों में इसकी भरमार हो जाती है। मगर मौसम के प्रतिकूल होने के कारण इस बार बुरांस के पेड़ो पर कोंपले भी नहीं खिल पाई हैं।

चमोली जिले के कई ग्रामीण जंगलों में हर साल प्रचुर मात्रा में बुरांस (burans flower) खिलता है। इसके जूस के कई स्वास्थ्य रोग खत्म हो जाते हैं। हृदय रोगों के लिए इसे सर्वोत्तम औषधि मानी जाती है। बुरांस के न खिलने से कई लोगों को निराशा हाथ लगी है। बता दें इस पुष्प का जूस देश-विदेश में प्रचलित है। यात्रियों के बीच बुरांस का जूस काफी प्रचलित है। बता दें कि प्रतिवर्ष 200 से 500 लीटर तक बुरांस का जूस उत्पादित किया जाता था मगर सभी को इस बार निराशा ही हाथ लगी है। बुरांस के फूलों पर भी निर्भर रहने वाले व्यापारियों को इस बार भारी नुकसान होने की पूर्ण समभावना है। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय (कर्णप्रयाग) में वनस्पति विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विश्वपति भट्ट ने बताया कि बुरांस की फ्लावरिंग हमेशा 20 से 25 डिग्री तापमान में ही संभव हो पाती है। पहाड़ों पर पड़ी बर्फबारी और कड़ाके की ठंड में मौसम में ठंडापन लाकर इन फूलों को उगने के लिए सही तापमान नहीं दिया। इसी के कारण बुरांस के फूलों की उपज बीते वर्षों की अपेक्षा काफी कम हुई है
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