गढ़वाल: लॉकडाउन में घर लौटे आशीष ने शुरू किया पशुपालन, बेहतर कल की उम्मीद
लॉकडाउन में नौकरी गंवाने के बाद वापस गांव की ओर लौट आशीष डंगवाल के कंधों पर अपने दिव्यांग भाई और भाभी की जिम्मेदारी थी। उन्होंने अपना काम शुरू किया है।
Jun 21 2020 10:10AM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल
कोरोना....इस शब्द के आसपास हमारी पूरी दुनिया सिमट कर रह गई है। या यूं कहें कि कोरोना ने जिंदगी की रफ्तार को बिल्कुल थाम सा दिया हो। खौफ के साथ ही बेरोजगारी को भी अपने साथ लाई है यह वैश्विक महामारी। उत्तराखंड में कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में सैकड़ों युवाओं ने अपनी नौकरी गंवा दी है। कई युवाओं ने अपनी नौकरी खो देने के बाद गांव की ओर रुख किया है। वे गांव की ओर वापस तो आ गए हैं मगर उनके पास इस समय रोजगार का कोई विकल्प नहीं है। उनके सामने रोजी-रोटी का एक बड़ा संकट खड़ा हो चुका है। मगर कई युवा ऐसे हैं जो हाथ पर हाथ धरे ना बैठ कर कर्म करने में विश्वास रखते हैं। उपलब्ध साधनों के साथ ही स्वरोजगार के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं और साथ ही साथ लोगों को प्रोत्साहन भी दे रहे हैं। आज हम टिहरी गढ़वाल के एक ऐसे ही युवा के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जो दौरान अपनी नौकरी से हाथ धो बैठा और वापस अपने गांव की ओर आ गया। गांव आकर उसने स्वरोजगार के पथ पर चलने का निर्णय लिया और अनोखी मिसाल पेश की। हम बात कर रहे हैं थौलदार ब्लॉक के तिवार गांव के आशीष डंगवाल की।
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आशीष एक युवा प्रवासी है जो हाल ही में अपने गांव तिवार लौट आए हैं। वे सिंगापुर के एक होटल में शेफ का काम करते थे। लेकिन दुर्भाग्यवश कोरोना वायरस ने उनकी नौकरी छीन ली। गांव वापस लौटे तो परिवार की पालन पोषण की चिंता सताने लगी। आशीष डंगवाल के माता-पिता काफी समय पहले गुजर चुके हैं। उनके घर में उनके दिव्यांग भाई और भाभी हैं जिनकी देखभाल की जिम्मेदारी आशीष के कंधों के ऊपर ही है। ऐसे में आत्मविश्वास और हिम्मत की बहुत जरूरत होती है। उन्होंने हिम्मत जुटाई, मनोबल मजबूत किया और स्वरोजगार का पथ अपनाया। उन्होंने अपने घर पर ही पशु पालन करते हुए एक दर्जन बकरियां 6 मुर्गियां और एक गाय के जरिए अपना पशुपालन का काम शुरू किया। इस समय आशीष पशुपालन के जरिए अपने दिव्यांग भाई भाभी और अपना पेट पाल रहे हैं। उनकी देखादेखी गांव के अन्य युवाओं ने भी स्वरोजगार के पथ पर चलने की ठानी है। आशीष पशुपालन के जरिए न केवल अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं बल्कि कई युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनकर सामने आए हैं। जरूरत है कि गांव पहुंचे अधिक से अधिक युवा स्वरोजगार को अपनाएं ताकि भविष्य में उनको किसी भी प्रकार की आर्थिक समस्या न हो।