उत्तराखंड: दो भाइयों ने गांव में ही खोल दिया चप्पल बनाने का कारखाना..शानदार कमाई
चंपावत जिले के दो भाइयों ने स्वरोजगार की एक अनोखी मिसाल समाज के आगे पेश की है। जिले के दोनों भाइयों ने अपने छोटे से गांव में चप्पल बनाने का कारखाना शुरू किया जो अब बेहद तेजी से रफ्तार पकड़ रहा है। उनका स्वरोजगार का यह आइडिया हिट है।
Jun 23 2020 2:09PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल
आजकल जिस प्रकार के हालात बन रखे हैं उस हिसाब से उत्तराखंड के युवाओं को स्वरोजगार अपनाने की तरफ कदम अग्रसर करने चाहिए। सैकड़ों युवा इस समय नौकरी से हाथ धो बैठे हैं और गांव की ओर वापस रुख कर चुके हैं। ऐसे में उनके सामने स्वरोजगार एक अच्छे विकल्प के तौर पर साबित हो सकता है। आज स्वरोजगार की ऐसी ही अनोखी कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं। खबर चंपावत जिले से आई है। चंपावत जिले के दो भाइयों ने स्वरोजगार की एक अनोखी मिसाल समाज के आगे पेश की है। जिले के दोनों भाइयों ने अपने छोटे से गांव में चप्पल बनाने का कारखाना शुरू किया जो अब बेहद तेजी से रफ्तार पकड़ रहा है। खबर चंपावत जिले के किस्कोट गांव की है। इस गांव में चप्पल बनाने की यह एकमात्र फैक्ट्री है। लघु उद्योग के तहत शुरू की जाने वाली यह फैक्ट्री को शुरुआत करने के पीछे गांव के ही दो भाई पितांबर जोशी और बलदेव जोशी का हाथ है। आगे पढ़िए
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दोनों की मेहनत, लगन और हौसले की बदौलत ही उन्होंने पहाड़ में यह लघु उद्योग बनाने की शुरुआत की और पिछले साल अक्टूबर में चप्पल बनाने का कारखाना शुरू किया। पितांबर जोशी के अनुसार उन्होंने चप्पल बनाने का अनुभव आगरा से लिया। उसके बाद उनको राज्य सरकार के ग्राम उद्योग योजना से 10 लाख रुपए उधार मिले जिसको उन्होंने अपने इस लघु उद्योग स्टार्टअप में लगाया। वह चप्पल बनाने के लिए कच्चा माल दिल्ली और हरियाणा से मंगवाते हैं। उनकी इस फैक्ट्री में हर महीने तकरीबन साढ़े सात हजार जोड़ी चप्पल बनाई जा रही है। इनसे दोनों भाइयों को तीस हजार से भी अधिक की आय हो रही है। यूके हिल्स नाम के तहत तैयार एवं बेची जा रही इन चप्पलों चंपावत के लोगों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। यह चप्पल चंपावत जिले के अलग-अलग नगर और ग्रामीण बाजारों में बेची जा रही हैं जिनसे दोनों भाइयों को गजब का मुनाफा हो रहा है।
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पितांबर जोशी और उनके भाई बलदेव जोशी का कहना है कि अब वह इस रोजगार को विस्तार देना चाहेंगे और बागेश्वर, पिथौरागढ़ एवं अल्मोड़ा जिले तक भी अपने इस व्यवसाय को बढ़ाने के ऊपर विचार करेंगे। उनके इस व्यवसाय की शुरुआत दिसंबर 2019 से हुई थी जिसके बाद गांव के कई लोगों को दोनों भाइयों ने थोड़ा-थोड़ा रोजगार भी प्रदान किया है। पितांबर जोशी बताते हैं कि बाकी के जिलों में भी अगर उनका यह कारोबार सफल हो जाता है तो बाकी के लोगों को भी उनके इस कारोबार से जोड़ा जा सकेगा ताकि उनको भी रोजगार मिल सके। लघु उद्योग सही मायनों में स्वरोजगार का एक अनोखा जरिया जिससे कम लागत में अधिक मुनाफा मिल सकता है। ग्राम उद्योग योजना के जरिए लोग इन लघु उद्योगों की शुरुआत घर पर ही कर सकते हैं। दोनों भाइयों ने वाकई स्वरोजगार की यह अनोखी मिसाल समाज के समक्ष पेश की है।