image: Story of pauri garhwal jyoti rautela

गढ़वाल की ज्योति को सलाम, लाचार-बेसहारा बुजुर्गों का सहारा बनी ये बिटिया

समाजसेवी ज्योति रौतेला लाचार-बेसहारा बुजुर्गों की ‘लाठी’ बन उनकी जिंदगी को सहारा दे रही हैं। बुजुर्गों की सेवा के लिए उन्होंने अपने गांव में एक वृद्धाआश्रम स्थापित किया है, जानिए इनकी कहानी।
Aug 19 2020 4:27PM, Writer:Komal Negi

मुसीबत के वक्त में दूसरों के काम आना ही इंसानियत है। कोरोना संकट के इस दौर में जब ज्यादातर लोग सिर्फ खुद तक सिमटे हुए हैं, उस वक्त भी उत्तराखंड में ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने संकट के समय को सेवा के जरिए में तब्दील कर इंसानियत की मिसाल पेश की। सेवाभाव की ऐसी ही एक कहानी पौड़ी गढ़वाल के लैंसडौन से आई है, जहां समाजसेवी ज्योति रौतेला लाचार-बेसहारा बुजुर्गों की लाठी बन उनकी जिंदगी को सहारा दे रही हैं। ज्योति रौतेला मूलरूप से जयहरीखाल स्थित सकमुंडा गांव की रहने वाली हैं। वो लैंसडौन में आशियाना राधा देवी वृद्धाश्रम का संचालन करती हैं। इस आश्रम में अपनों द्वारा ठुकराए गए बुजुर्गों को सहारा दिया जाता है। आश्रम में रहने वाले हर बुजुर्ग की अपनी अलग कहानी है।

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अब मठाली निवासी 80 वर्षीय चंडी प्रसाद को ही देख लें। कहने को उनके तीन बेटे हैं, लेकिन उम्र के आखिरी पड़ाव में सब ने साथ छोड़ दिया। 2 साल पहले बेटों ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। तब इस बुजुर्ग को ज्योति गैरोला ने सहारा दिया। ऐसी ही कहानी 75 वर्षीय फगुणी देवी और लखनऊ की शकुंतला देवी की भी है। दोनों का भरा-पूरा परिवार है, लेकिन बुढ़ापे में इन्हें किसी ने सहारा नहीं दिया। अपनों के क्रूर व्यवहार ने इन्हें घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया। आज ये दोनों ही अपनी जिंदगी का आखिरी पड़ाव आशियाना राधा देवी आश्रम में गुजार रही हैं। आश्रम में रह रहे 36 बुजुर्गों की ऐसी ही अलग-अलग दास्तान है। जिन्हें अपनों ने ठुकरा दिया, उन बुजुर्गों की जिंदगी में ज्योति रौतेला उम्मीद की नई किरण बनकर सामने आईं। चलिए अब आपको ज्योति के बारे में बताते हैं। जयहरीखाल के सकमुंडा गांव की रहने वाली ज्योति लैंसडौन से बीए करने के बाद साल 1999 में दिल्ली चली गईं। वहां प्राइवेट कंपनी में जॉब करने लगीं, लेकिन मन पहाड़ में ही लगा रहा। वो समाज के लिए कुछ बेहतर करना चाहती थीं। इसलिए साल 2003 में ज्योति गांव वापस लौट आईं।

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इसके बाद उन्होंने अपनी एक संस्था रजिस्टर्ड कराई और गांवों में मेडिकल कैंप लगाने शुरू कर दिए। ज्योति बताती हैं कि कैंप में एक दिन एक बुजुर्ग महिला नंगे पैर आई थी। ज्योति ने इसकी वजह पूछी तो पता महिला ने बताया कि उसके पास चप्पल खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। बाद में ज्योति ने बुजुर्ग महिला को चप्पलें दिलाईं। इस अपनेपन ने बुजुर्ग महिला का दिल जीत लिया और उसने अपनी पीड़ा ज्योति को बताई। बुजुर्ग की तकलीफ जान ज्योति ने ऐसे लोगों के लिए वृद्धाश्रम खोलने का संकल्प लिया। इसके लिए उनकी दादी राधा देवी ने 90 हजार रुपये की मदद दी, जिनके नाम पर ज्योति ने आश्रम का नाम रखा है। साल 2014 में बने इस आश्रम को स्थापित करने में ज्योति को कई तरह की दिक्कतें आईं, लेकिन उन्होंने अपने कदम पीछे नहीं खींचे। आज आशियाना राधा देवी वृद्धाश्रम पहाड़ के बेसहारा बुजुर्गों को अपनेपन का अहसास करा रहा है। यहां बुजुर्गों के स्वास्थ्य से लेकर उनके मनोरंजन तक का हर इंतजाम है। राज्य समीक्षा ज्योति रौतेला जैसी बेटियों को सैल्यूट करता है, जो निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज की बेहतरी के लिए काम कर रही हैं। अगर आपके पास भी ऐसी कोई कहानी हो तो हमें जरूर बताएं, हम इन कहानियों को मंच देने का प्रयास करेंगे।


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