पहाड़ की बेटी गायत्री..भारत की इकलौती भू-वैज्ञानिक, जिसने USA और मॉरिशस में दी सेवाएं
जिओ साइंटिस्ट डॉ. गायत्री कठायत भारतीय मूल की एकमात्र भू-वैज्ञानिक हैं, जिन्हें नॉर्थ-साउथ अमेरिका, मॉरिशस और रॉड्रिग्स में काम करने का मौका मिला।
Oct 29 2020 6:00PM, Writer:Komal Negi
कहते हैं, जब इरादे बुलंद हों, तो कोई भी मुश्किल आपको सफल होने से रोक नहीं सकती। इसी कहावत को सच साबित कर दिखाया है उत्तराखंड की साइंटिस्ट बेटी डॉ. गायत्री कठायत ने। जिस प्रदेश में प्रसव पीड़ा से तड़पती महिलाएं सड़कों पर दम तोड़ देती हों, बेटियों को स्कूल जाने के लिए कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता हो, उसी पहाड़ की एक बेटी डॉ. गायत्री कठायत अपनी प्रतिभा के दम पर उत्तराखंड का मान पूरी दुनिया में बढ़ा रही हैं। डॉ. गायत्री कठायत जिओ साइंटिस्ट हैं। चीन की शियान जाइटोंग यूनिवर्सिटी में बतौर प्रोफेसर कार्यरत हैं। डॉ. गायत्री मूलरूप से उत्तराखंड के नैनीताल की रहने वाली हैं। उनकी सफलताओं और पहाड़ के लिए उनकी सोच को बयां करने के लिए शब्द भी कम पड़ जाते हैं। भू-वैज्ञानिक डॉ. गायत्री कठायत भारतीय मूल की एकमात्र भू-वैज्ञानिक हैं, जिन्हें नॉर्थ-साउथ अमेरिका, मॉरिशस और रॉड्रिग्स में काम करने का मौका मिला।
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वैश्विक जलवायु वैज्ञानिक प्रो. गायत्री कठायत नॉर्थ अमेरिका, साउथ अमेरिका, मेडागॉस्कर, मॉरीशस, इराक और चीन जैसे देशों में काम कर चुकी हैं। उन्होंने भारत, दक्षिण अफ्रीका, इराक और चीन समेत कई देशों की जलवायु का अध्ययन किया है। अब तक उनके कई जर्नल साइंस मैग्जीन में प्रकाशित हो चुके हैं। जिनमें 9 बड़े शोध पत्र भी शामिल हैं। आज हम डॉ. गायत्री की सफलता देख रहे हैं, लेकिन यहां तक पहुंचने का उनका सफर वक्त के बेरहम और मेहरबान हो जाने की बड़ी दिलचस्प दास्तान है। नैनीताल की रहने वालीं डॉ. गायत्री के पिता चंदन कठायत नगर पालिका के कर्मचारी रहे हैं। साधारण पहाड़ी परिवार से ताल्लुक रखने वाली डॉ. गायत्री जीवन में कुछ अलग करना चाहती थीं। वैज्ञानिक बनना चाहती थीं। पिता चंदन कठायत और माता तुलसी कठायत ने भी हमेशा बेटी को सपोर्ट किया। उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। नैनीताल से एमएससी करने के बाद डॉ. गायत्री ने विदेश से अपनी पीएचडी कंप्लीट की। उनके नाम एक भू-वैज्ञानिक के तौर पर दिसंबर 2017 में दुनिया के 5700 वर्षों के मौसमी आंकड़े तैयार करने की उपलब्धि दर्ज है।
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पिछले दस साल से वो चीन की यूनिवर्सिटी में सेवाएं दे रही हैं। उनके शोधपत्र साइंस एडवांस में प्रकाशित हुए हैं। कोरोना काल के दौरान नैनीताल में रह रहीं डॉ. गायत्री कहती हैं कि वर्तमान में उत्तराखंड की स्थिति देखकर उन्हें दुख होता है। पहले पहाड़ में सेब-आड़ू की खेती अच्छी होती थी, अब नहीं होती। हॉर्टिकल्चर विशेषज्ञ कहते हैं कि मौसम चेंज हो गया, लेकिन लोगों को ये नहीं बताते कि इसका विकल्प क्या है। पहाड़ में आप कितने होटल बना लेंगे, सारे होटल बिल्डर्स के हैं। गरीब पहाड़ियों के नहीं हैं। वो तो अब भी पलायन करने को मजबूर हैं। सारी जमीनें बिल्डर्स ने खरीद कर छोड़ दी हैं। खेती ना होने की वजह से ये जमीन बंजर होती जा रही है। रोड बनाने के लिए जंगल के जंगल काट दिए गए। नदियां सूख गईं। गुलदार-बाघ अब आबादी में आने लगे हैं, क्योंकि उनके आने-जाने वाले रास्ते पर हाईवे बना दिया गया। जंगल से हिरण जैसे जानवर गायब हुए तो गुलदार आबादी वाले इलाकों में घुसकर लोगों को मारने लगे। डॉ. गायत्री कहती हैं कि विकास होना चाहिए, लेकिन इसके लिए प्लानिंग होना बेहद जरूरी है। नदियों का रिचार्ज बंद करने से, बांज के जंगल नष्ट करने से हम केवल अपना भविष्य नष्ट कर रहे हैं। ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर मंथन किया जाना बेहद जरूरी है।