उत्तराखंड: बाजार में पहली बार बिक्री के लिए आई कंडाली..120 रुपये प्रति किलो के भाव से बिकी
कभी सिर्फ घास समझी जाने वाली कंडाली कोटद्वार में 120 रुपये प्रति किलो के भाव बिक रही है। दाम ज्यादा होने के बावजूद लोग इसे हाथों-हाथ खरीद रहे हैं।
Dec 10 2020 5:27PM, Writer:Komal Negi
उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में घास के तौर पर पाई जाने वाली कंडाली इन दिनों रोजगार का जरिया बन गई है। पहाड़ी जिलों में इसका साग बड़े चाव से खाया जाता है। इसमें कई औषधीय गुण हैं। कभी स्वाद और दवा के तौर पर इस्तेमाल होने वाली कंडाली अब आय का जरिया भी बन रही है। कोटद्वार के बाजार में कंडाली की जबर्दस्त बिक्री हो रही है। कभी सिर्फ घास समझी जाने वाली कंडाली यहां 120 रुपये प्रति किलो के भाव बिक रही है। दाम ज्यादा होने के बावजूद लोग इसे हाथों-हाथ खरीद रहे हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह है। दरअसल कंडाली यानी बिच्छू घास में रोग प्रतिरोधक गुण पाए जाते हैं।
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पिछले दिनों एक वैज्ञानिक शोध भी प्रकाशित हुआ था, जिसमें कंडाली में कोरोना से लड़ने वाले 23 यौगिक होने की बात कही गई थी। इस तरह कंडाली कोरोना से लड़ने में भी मददगार साबित हो सकती है। पहाड़ के लोग इसकी मेडिशनल वेल्यू जानते हैं, यही वजह है कि कंडाली पहाड़ियों के खान-पान का अहम हिस्सा रही है। अब तो बाजारों में इसकी बिक्री भी होने लगी है। पिछले दिनों जब कंडाली कोटद्वार के बाजार में बिक्री के लिए पहुंची तो लोगों ने इसे हाथों-हाथ खरीद लिया। दुगड्डा के अंतर्गत आने वाले जमरगड्डी क्षेत्र के रहने वाले एक काश्तकार जब कंडाली लेकर कोटद्वार के बाजार पहुंचे तो एक घंटे के भीतर उनकी सारी कंडाली बिक गई। 120 रुपये प्रति किलो दाम होने के बावजूद लोगों ने खूब कंडाली खरीदी।
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कंडाली खरीदने वाले लोगों ने कहा कि कंडाली में कई औषधीय गुण हैं, लेकिन परेशानी ये है कि कोटद्वार क्षेत्र में अब कंडाली ढूंढकर भी नहीं मिलती। अगर ये मिल भी जाए तो इसे काटकर घर तक लाना बड़ी समस्या है। ऐसे में इसका बाजारों में बिक्री के लिए आना स्वागत योग्य पहल है। इस तरह कंडाली पहाड़ में रोजगार का बढ़िया जरिया बन सकती है। आपको बता दें कि कंडाली पोषक तत्वों से भरपूर घास है। इसमें काफी आयरन होता है। साथ ही विटामिन ए, सी, पोटैशियम, मैग्निज और कैल्शियम जैसे पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। पहाड़ में अब इसकी पत्तियों से चाय तैयार की जा रही है। वहीं इसके रेशों का इस्तेमाल चप्पल, जैकेट और कंबल बनाने में हो रहा है।