उत्तराखंड: बर्फबारी के बीच बीमार महिला को कंधे पर ढोया, 16 Km पैदल चलने के बाद मिला इलाज
इस गांव में रास्ता नहीं है, ऐसे में ग्रामीणों ने बारिश और बर्फबारी के बीच ही कुर्सी की पालकी बनाई और उसमें बीमार महिला को बैठाकर अस्पताल के लिए निकल पड़े। पूरे रास्ते में बर्फ गिरती रही, लेकिन ग्रामीणों ने हिम्मत नहीं हारी।
Dec 14 2020 2:38PM, Writer:Komal Negi
पहाड़ में विकास के दावों की हकीकत दिखाती ये तस्वीर चमोली जिले से आई है। बीते दिन यहां एक बीमार महिला को अस्पताल पहुंचाने के लिए ग्रामीण बर्फ पर 16 किलोमीटर पैदल चले। खराब मौसम, हड्डियां गला देने वाली ठंड और लगातार होती बर्फबारी। सोचिए जब हमें ये तस्वीरें देखकर ही सिहरन हो रही है, तो उन ग्रामीणों और बीमार महिला पर क्या बीती होगी, जिन्हें अस्पताल तक जाने के लिए कई किलोमीटर का पैदल सफर करना पड़ा। उत्तराखंड को अलग राज्य बने हुए सालों बीत गए, लेकिन दूरस्थ क्षेत्र आज भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं। गांवों में आज भी लोगों को अस्पताल पहुंचने के लिए कई-कई किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ रहा है। बीमार लोग एंबुलेंस नहीं बल्कि डंडी-कंडी के सहारे अस्पताल पहुंचाए जाते हैं। इस बार ऐसी ही एक तस्वीर जोशीमठ से सामने आई। जहां डुमक गांव में महिला को अस्पताल पहुंचाने के लिए 20 से ज्यादा ग्रामीणों को 16 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। आगे पढ़िए
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गांव में रहने वाली विनीता देवी को पेट में दर्द की शिकायत थी। हालत बिगड़ने लगी तो ग्रामीणों ने उन्हें अस्पताल पहुंचाने का फैसला लिया। हालांकि ये इतना आसान नहीं था। गांव में रास्ता नहीं है, ऐसे में ग्रामीणों ने बारिश और बर्फबारी के बीच ही कुर्सी की पालकी बनाई और उसमें बीमार महिला को बैठाकर अस्पताल के लिए निकल पड़े। पूरे रास्ते में बर्फ गिरती रही, लेकिन ग्रामीणों ने हिम्मत नहीं हारी। किसी तरह ग्रामीणों ने महिला को स्यूण बेमरू गांव तक पहुंचाया। यहां से बीमार महिला को वाहन के जरिए पीपलकोटी के अस्पताल भेजा गया। ग्रामीणों ने बताया कि डुमक गांव के लिए 30 साल पहले सड़क स्वीकृत हुई थी, लेकिन ये सड़क आज तक नहीं बन पाई। ठेकेदार ने आधा काम ही कराया। रोड निर्माण का काम अब तक पूरा नहीं हो सका है। जिस वजह से ग्रामीणों को आवाजाही में परेशानी हो रही है। वहीं एडीबी के अधिकारियों का कहना है कि सड़क निर्माण में साढ़े सात सौ मीटर चट्टान लगी है। जिसे काटने में परेशानी हो रही है। साल 2021 तक गांव तक सड़क पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।