खतरा: चमोली के ऋषिगंगा में तेजी से पिघल रहे हैं बर्फ के ग्लेशियर.. वैज्ञानिकों को चिंता
ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र में 8 से ज्यादा ग्लेशियर सामान्य से अधिक रफ्तार से पिघल रहे हैं। जाहिर है इनसे ज्यादा जलप्रवाह होगा और एवलांच यानी हिमखंड के टूटने की घटनाएं भी अधिक होंगी। Chamoli Disaster: Catchment area snow melting in chamoli
Feb 9 2021 4:01PM, Writer:Komal Negi
ग्लोबल वॉर्मिंग का असर हिमालय पर भी दिखने लगा है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, झीलों का दायरा घटने लगा है। वैज्ञानिकों की मानें तो रविवार को चमोली में हुई आपदा के पीछे भी जलवायु परिवर्तन मुख्य वजह है। चमोली में हुई आपदा अचानक नहीं हुई। 37 साल पहले ही इसके संकेत मिलने लगे थे, लेकिन विकास की दौड़ में खुद को बनाए रखने के लिए इन संकेतों पर ध्यान नहीं दिया गया। वैज्ञानिकों के मुताबिक नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व के ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इस क्षेत्र के आठ बड़े ग्लेशियरों की लंबाई में औसतन दस फीसदी तक कमी आई है।
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पिछले चार दशक में यहां 26 फीसदी तक बर्फ कम हो चुकी है। स्नो लाइन भी तेजी से कम होती जा रही है। जिसके गंभीर नतीजे हम सबके सामने हैं। स्नो लाइन का कम होना प्रकृति और पर्यावरण के लिए शुभ संकेत नहीं है। साल 2003 से 2018 में नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व और कोर जोन नंदादेवी नेशनल पार्क क्षेत्र में प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति पर शोध किया गया था। शोध कार्य में उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों और अन्य भू-विशेषज्ञों की मदद ली गई। इस दौरान वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड की सबसे ऊंची हिम चोटी नंदादेवी के आसपास के आठ ग्लेशियरों का भी वृहद रूप से अध्ययन किया था। ये सभी ग्लेशियर ऋषि गंगा कैचमेंट क्षेत्र में आते हैं।
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शोध के दौरान पता चला कि कैचमेंट क्षेत्र में वर्ष 1980 से 2018 तक 26 फीसदी बर्फ कम हो चुकी है। ग्लेशियरों की बर्फ तेजी से पिघल रही है। नार्थ ग्लेशियर की तुलना में साउथ ग्लेशियर के पिघलने की गति अधिक है। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट के मुताबिक साल 1980 से लेकर 2017 के बीच इस क्षेत्र के तापमान में औसतन 0.5 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हुआ है। गढ़वाल मंडल के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा यहां 30 फीसदी कम बारिश होती है। ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र में 8 से ज्यादा ग्लेशियर सामान्य से अधिक रफ्तार से पिघल रहे हैं। जाहिर है इनसे ज्यादा जलप्रवाह होगा और एवलांच यानी हिमखंड के टूटने की घटनाएं भी अधिक होंगी।