हरिद्वार महाकुंभ: 100 गुना कठिन होता है नागा साधुओं का जीवन.. खुद करते हैं अपना पिंडदान
नागा साधु बनना आसान नहीं है। नागा दीक्षा के लिए संन्यासियों को कठिन परीक्षा देनी पड़ती है। नागा साधु का जीवन आम लोगों से 100 गुना कठिन होता है।
Mar 6 2021 8:27PM, Writer:Komal Negi
तप में लीन रहकर कठिन जीवन जीने वाले नागा साधु महाकुंभ का सबसे बड़ा आकर्षण होते हैं। हर कोई ये जानना चाहता है कि आखिर नागा साधु कौन होते हैं, उनका जीवन कैसा होता है। इस तरह के कई सवाल आपके मन में भी जरूर होंगे। आप ही की तरह हमने भी इन सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश की है। हरिद्वार में पहुंचे दिगंबर और श्रीदिगंबर नागाओं के दर्शन के लिए इन दिनों श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। इनके दर्शन के लिए श्रद्धालु कई वर्षों तक कुंभ का इंतजार करते हैं। नागा साधु बनना आसान नहीं है। नागा दीक्षा के लिए संन्यासियों को कठिन परीक्षा देनी पड़ती है। नागा साधु का जीवन आम लोगों से 100 गुना कठिन होता है। अंतिम प्रण देने के बाद कुंभ में दीक्षा के बाद संन्यासी लंगोट त्याग देते हैं।
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पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव श्रीमंहत रविंद्र पुरी बताते हैं कि नागा साधु बनने में 12 वर्ष का समय लग जाता है। नागा पंथ के नियमों को सीखने में ही पूरे छह साल का समय लगता है। इस दौरान ब्रह्मचारी एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। ब्रह्मचारी परीक्षा को पास करने के बाद महापुरुष दीक्षा होती है। यज्ञोपवीत और पिंडदान की बिजवान परीक्षा होती है। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वो लंगोट भी त्याग देते हैं। कुंभनगरी के अनुसार ही नागाओं को उपाधि दी जाती है। प्रयागराज में नागा, उज्जैन में खूनी नागा, हरिद्वार में बर्फानी नागा और नासिक में खिचड़िया नागा की उपाधि दी जाती है। नागा साधुओं की आखिरी परीक्षा दिगंबर और फिर श्रीदिगंबर की होती है।
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दिगंबर नागा एक लंगोटी धारण करते हैं, लेकिन श्रीदिगंबर नागा को निर्वस्त्र रहना होता है। नागा साधुओं का जीवन बेहद कठिन है। वो सुबह चार बजे बिस्तर छोड़ देते हैं। नित्य क्रिया और स्नान के बाद वो पहले 17 श्रृंगार करते हैं। इसके बाद पूजा, ध्यान, वज्रोली, प्राणायाम, कपाल और नौली क्रिया करते हैं। गुरु की सेवा, तपस्या, योग क्रियाएं, पूजन और आश्रम के काम ही नागा साधुओं के मूल काम होते हैं। वो पूरे दिन में केवल शाम को एक बार भोजन करते हैं। संतों के 14 अखाड़े हैं। जिनमें से केवल जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आह्वान अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं। हमेशा तपस्या में लीन रहने वाले नागा साधु महाकुंभ के बाद कठोर तप के लिए दुर्गम क्षेत्रों में लौट जाते हैं।