गढ़वाल राइफल का वो बकरा, जिसने युद्ध में कई सैनिकों को बचाया..सेना ने दिया जनरल का दर्जा
कहने को बैजू बकरा था, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इस बकरे ने गढ़वाल राइफल्स के सैनिकों की जान बचाई थी। कहानी साभार- अमर उजाला, काफल ट्री
Mar 23 2021 6:04PM, Writer:कोमल नेगी
उत्तराखंड के युद्ध नायकों की शौर्य गाथाएं पूरे विश्व में मशहूर हैं। भारतीय सेना के शौर्य और वीरता का लोहा दुनियाभर के देशों ने माना है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे युद्ध नायक के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने आप में अनोखा था। हम बात कर रहे हैं बैजू बकरा की। कहने को बैजू बकरा था, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इस बकरे ने गढ़वाल राइफल्स के सैनिकों की जान बचाई थी। इस तरह इस बकरे को युद्ध के बाद युद्ध नायकों जैसा सम्मान दिया गया। यही नहीं उसे सेना में जनरल का पद भी दिया गया था। उस वक्त जनरल बैजू बकरे की शान देखने लायक हुआ करती थी। बैजू बकरे के आम बकरे से जनरल बैजू बकरा बनने की कहानी बेहद अद्भुत है, चलिए बताते हैं। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अफगानिस्तान में विद्रोह चरम पर था। इस दौरान ब्रिटिश सेना के 1700 सिपाही मारे गये थे। आगे पढ़िए
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बाद में मोर्चे पर गढ़वाल राइफल्स की टुकड़ी को अफगानिस्तान भेजा गया, लेकिन सेना की ये टुकड़ी अफगानिस्तान के चित्राल के पास रास्ता भटक गई। गढ़वाल राइफल्स के सैकड़ों सिपाही कई दिनों तक भूख से लड़ते रहे। एक दिन सिपाहियों ने देखा कि सामने की झाड़ियों में कुछ हलचल हुई। सैनिकों ने तुरंत बंदूक तान ली। इससे पहले कि सिपाही गोली चलाते, झाड़ी से एक तगड़ा बकरा निकल आया। बकरे की लंबी दाढ़ी थी। बकरा सिपाहियों को निहारने लगा, इधर भूखे सैनिकों के मन में उसे हलाल करने का ख्याल आने लगा। वो उसकी तरफ बढ़ने लगे। तभी बकरे ने अपने कदम तेजी से पीछे बढ़ाए और भागने लगा। सिपाही भी उसके पीछे दौड़ने लगे। बाद में बकरा एक खुले मैदान में जाकर रुक गया। सिपाही वहां पहुंचे तो देखा कि बकरा जमीन खोद रहा है। सैनिकों ने करीब जाकर देखा तो वहां मैदान में आलू निकले। आगे पढ़िए
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फिर क्या था, सैनिकों ने पूरा मैदान खोदना शुरू कर दिया। जहां से अगले कई दिन के लिए आलू इकट्ठा कर लिए गए। इस तरह युद्ध के बीच गढ़वाल राइफल्स के सैनिकों की जान बच गई। सैनिकों ने भी बकरे का अहसान माना और उसे वापसी में अपने साथ लैंसडाउन ले आए। यहां बकरे को न सिर्फ जनरल का पद दिया गया, बल्कि उसके लिए अलग से कमरे की व्यवस्था भी की गई। कहते हैं कि बैजू बकरे को पूरे लैंसडाउन में घूमने का अधिकार था। उसे बाजार में किसी भी दुकान से कुछ भी खाने की अनुमति थी। बैजू बकरा जो कुछ खाता, उसके बिल का भुगतान सेना करती थी। डॉ. रणवीर सिंह ने अपनी किताब ‘लैंसडाउन: सभ्यता और संस्कृति’ में जनरल बैजू बकरे का जिक्र किया है। गढ़वाल में आज भी जनरल बैजू बकरे के किस्से लोककथा के रूप में सुनाए जाते हैं।