नमन: गढ़वाली मुहावरों के पुरोधा कंडारी जी का निधन..रुद्रप्रयाग जिला गठन में निभाई थी अहम भूमिका
13 सौ गढ़वाली कहावतों एवं मुहावरों को संजोने वाले गढ़वाली साहित्य के प्रचारक एवं पुरोधा पुष्कर कंडारी जी का 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है।
Apr 11 2021 2:25PM, Writer:Komal Negi
ताउम्र गढ़वाली साहित्य के क्षेत्र में काम करने वाले और गढ़वाली साहित्य के प्रचारक एवं पुरोधा पुष्कर कंडारी हमेशा-हमेशा के लिए मौन हो गए हैं। पुष्कर कंडारी जिन्होंने ना केवल एक साहित्यकार के रूप में समाज में एक अहम भूमिका निभाई बल्कि एक समाजसेवी के तौर पर भी उन्होंने उत्तराखंड में सेवाएं प्रदान की। उन्होंने 92 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली। बता दें कि पुष्कर कंडारी बीते 1 साल से अपने बड़े बेटे रवि शंकर भंडारी के साथ दिल्ली में रह रहे थे। वे बीते कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे जिसके बाद बीते शनिवार उन्होंने दम तोड़ दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके गांव और समस्त जिले में शोक की लहर छा गई है। वे अपने पीछे अपनी पत्नी, दो बेटे और दो बेटियों का एक भरा पूरा परिवार छोड़ कर गए हैं। चलिए आपको उनके जीवन के कुछ अनोखे पहलुओं से रूबरू कराते हैं।
यह भी पढ़ें - उत्तराखंड में मौसम मेहरबान..3 जिलों में होगी झमाझम बारिश
पुष्कर कंडारी का जन्म रुद्रप्रयाग के जगोथ गांव में सन 1929 में हुआ था। उनकी मां का नाम पंचमी देवी और पिता का नाम देव सिंह कंडारी था। पुष्कर सिंह कंडारी ने रुद्रप्रयाग जिला गठन में अहम भूमिका भी निभाई थी और उनको जिले के गठन के लिए सर्वदा याद रखा जाएगा। पुष्कर सिंह कंडारी ने 3 विषयों में एमए की डिग्री प्राप्त कर एलटी की डिग्री प्राप्त की और 28 वर्षों तक विभिन्न विद्यालय में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य किया। जिसके बाद वह लंबे समय तक पौड़ी और टिहरी में जिला विद्यालय निरीक्षक के पद पर भी तैनात रहे। उन्होंने पौड़ी और टिहरी जिले के अलावा चमोली और रुद्रप्रयाग जिले में भी काम किया। विद्यालय निरीक्षक के पद पर कार्यरत रहने के दौरान उनको उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों और जगहों को जानने का और वहां के लोगों और उनके रहन-सहन और जनजीवन को पास से जानने का मौका मिला।सेवानिवृत्त होने के बाद वे अगस्त्यमुनि में रहकर साहित्य रचना एवं जन सेवा में लग गए और उन्होंने विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़कर उत्तराखंड में सामाजिक कार्य किया और समाज सेवा में अपना नाम कमाया। गढ़वाली साहित्य में उन्होंने जो काम किया है वह स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज किया जाएगा। गढ़वाली भाषा को समृद्ध करने में उन्होंने जो योगदान दिया है वह बेहद अहम है और आने वाली पीढ़ी के लिए एक आशीर्वाद है।
यह भी पढ़ें - उत्तराखंड की मुस्लिम सोसायटी का फरमान..महिलाओं का मैरिज हॉल जाना हराम
पुष्कर कंडारी ने गढ़वाली साहित्य को जीवित रखने में एक वृहद भूमिका अदा की। आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि पुष्कर कंडारी जी ने अपने जीवन में 13 सौ गढ़वाली कहावतें एवं मुहावरे संजोए और उनको एक पुस्तक का रूप दिया। जी हां, उनको बचपन से ही गढ़वाली मुहावरों एवं कहावत को जमा करने का शौक था। एक इंटरव्यू में पुष्कर कंडारी ने बताया कि जब वह बहुत छोटे थे तब से ही गढ़वाली कहावतों एवं मुहावरों को जमा किया करते थे और छोटे-छोटे नोट्स बनाकर उसमें लिखा करते थे। बचपन से लेकर उन्होंने अपने जीवन के लंबे समय तक 1300 गढ़वाली कहावतों एवं मुहावरों को जमा किया और उनको एक पुस्तक का रूप देकर गढ़वाली साहित्य को समृद्ध करने में एक अहम भूमिका निभाई। उनके निधन के साथ ही उत्तराखंड का एक बेहद अहम अंश भी खो चुका है। वह अंश जिसने अपना जीवन गढ़वाली साहित्य को समृद्ध करने में और समाज सेवा में लगा दिया।