उत्तराखंड: नरेंद्र बिष्ट से कुछ सीखिए..गांव में शुरू की लिलियम की खेती, लाखों में कमाई
नरेंद्र ने पिछले साल अपनी जॉब गंवा दी, लेकिन वो निराश नहीं हुए। नौकरी छूटने के बाद नरेंद्र गांव लौट आए और यहां विदेशी फूलों की खेती करने लगे। आज नरेश लाखों कमा रहे हैं।
Jul 19 2021 6:14PM, Writer:Komal Negi
कोरोना काल ने हम में से ज्यादातर लोगों की जिंदगी मुश्किल बना दी। कई लोगों की जॉब चली गई। नौकरी चले जाने के बाद जहां कई लोग हाथ पर हाथ धरकर हालात सुधरने का इंतजार करने लगे, तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने इस मौके को एक नई शुरुआत के रूप में देखा। अल्मोड़ा के नरेंद्र सिंह बिष्ट ऐसी ही शख्सियत हैं। शीतलाखेत नौला गांव में रहने वाले नरेंद्र ने महासंकट में उपजे हालात में गांव में लिलियम की खेती शुरू की। अब पहाड़ के इस नौजवान के गांव में उगे एशियाटिक प्रजाति के विदेशी फूलों की महक गाजीपुर मंडी तक पहुंचने लगी है। जुनूनी युवक का प्रयोग गांव के दूसरे युवाओं को भी प्रेरणा दे रहा है। नरेंद्र पिथौरागढ़ में संविदा पर वन विभाग में तैनात थे। पिछले साल लॉकडाउन में उनकी जॉब चली गई, लेकिन नरेश निराश नहीं हुए। वो गांव लौटे और ऐसे फूल उगाने की ठानी, जिनकी मांग और महत्व ज्यादा हो। इसी दौरान नरेंद्र को गांव में हॉलैंड के लिलियम फूल की खेती करने का आइडिया आया। उन्हें पता चला कि हर बड़े सेमिनार में मंचों और सभागारों की सजावट में लिलियम का खूब इस्तेमाल होता है। बस फिर क्या था नरेंद्र ने गांव में लिलियम के फूल उगाने की जिद पकड़ ली। नरेंद्र का जज्बा देख उद्यान विभाग ने भी मदद की। आगे पढ़िए
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नरेंद्र ने एक नाली भूखंड में सौ वर्ग मीटर के दो पॉलीहाउस लगवाए। प्रयोग के तौर पर भीमताल से एशियाटिक प्रजाति के लिलियम बल्ब मंगाए। जून के आखिर में बल्ब लगाए गए और नवंबर की शुरुआत में फूल बिक्री के लिए तैयार हो गए। नरेंद्र ने अपने खर्चे पर फूल हल्द्वानी और गाजीपुर फूल मंडी भेजे। इससे उन्हें अच्छी आय हुई। पिछले सीजन में नरेंद्र ने 2000 बल्ब लगाए थे। एक बल्ब पर 15 रुपये का खर्च आया, वहीं बिक्री के लिए तैयार एक स्टिक 30 रुपये में बिकी। उन्हें कुल 1.20 लाख रुपये की आय हुई। उत्साहित नरेंद्र अब अपने पॉलीहाउस में ओरिएंटल लिलियम तैयार कर रहे हैं। उन्हें देखकर गांव के कई युवा फूलों की खेती के लिए आगे आ रहे हैं। नरेंद्र ऐसे लोगों को फूलों की खेती का तकनीकी प्रशिक्षण भी देने लगे हैं, ताकि वो भी फूलों की खेती के जरिए अपनी जिंदगी महका सकें।