उत्तराखंड विधानसभा चुनाव: अपनी जड़ें क्यों नहीं जमा सके UKD और क्षेत्रीय दल? पढ़िए
उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन का हिस्सा रहा यहां का सबसे पुराना क्षेत्रीय दल उत्तराखण्ड क्रान्ति दल हर विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद भी सत्ता से दूर ही रहा। पढ़िए उपान्त का ब्लॉग
Aug 25 2021 6:52PM, Writer:उपान्त डबराल
21 साल का युवा हो चुका उत्तराखण्ड अब फिर एक बार विधान सभा चुनाव की दहलीज़ पर बैठा है। यूं तो इन 20-21 सालों में इस प्रदेश को कई दौर के चुनावों से गुज़रना पड़ा है। जिनमें ग्राम पंचायत से लेकर नगर निगम और लोक सभा तक के चुनाव शामिल हैं। किसी भी प्रदेश के समग्र विकास के लिए विधान सभा चुनाव बड़े महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि समझा जाता है कि चुनकर आया विधायक अपने क्षेत्र की समस्याओं को भलीभांति समझते हुए उनके निराकरण हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम होता है।
क्षेत्रीय विकास की विचारधाराओं के कारण कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का निर्माण भी हुआ है। भारत में क्षेत्रीय दलों के मुख्यतया तीन रूप देखने को मिलते हैं।
पहला वे दल जो जाति-धर्म, समुदाय या क्षेत्र के हितों पर आधारित होते हैं। दूसरे वे दल जो किसी क्षेत्रीय समस्या के कारण राष्ट्रीय दल से अलग होकर बने हैं। तीसरे वे दल हैं जो लक्ष्य और विचारों के आधार पर तो राष्ट्रीय दल के समान हैं मगर वे किसी क्षेत्र विशेष में ही अपनी राजनीतिक गतिविधि संचालित करते हैं।
प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली में क्षेत्रीय दलों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है क्योंकि ये दल उपेक्षित हो रहे क्षेत्रीय समस्याओं और मुद्दों की ओर देश का ध्यान आकर्षित करते हैं। क्षेत्रीय समस्याओं के निराकरण में इन दलों की एक बहुत बड़ी भूमिका होती है। ज़रा यहां पर ये समझ लेना ज़रूरी है कि भारत में क्षेत्रीय दलों के बनने के कारण आख़िर हैं क्या?
इसका पहला कारण है - भाषायी, सांस्कृतिक व जातीय भिन्नता। उत्तराखण्ड में क्षेत्रीय दलों के उदय का भी यही कारण है। पिछले कुछ दशकों के चुनावी परिणामों से पता चल रहा है कि वर्तमान में क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दलों के लिए एक चुनौती बनते जा रहे हैं। राष्ट्रीय दलों को कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों का सहारा लेना पड़ रहा है यानि स्पष्ट रूप से माना जा सकता है कि वर्तमान राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है
उत्तराखण्ड एक ऐसा नवनिर्मित राज्य है जिसने 21 वर्षों में अपना कोई अस्तित्व कायम नहीं किया। यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार के साथ-साथ अपने जल, जंगल और ज़मीन की बात भी दरकिनार करते हुए सत्ता का भोग किया जाता रहा। कारण यही है कि शासन करने वाली पार्टियां क्षेत्रीय समस्याओं को समझने की कोशिश नहीं कर रहीं हैं या उन्हें अनदेखा कर रही हैं क्योंकि किसी एक राज्य की समस्या के निवारण का दुष्प्रभाव किसी दूसरे राज्य की सत्ता पर न पड़ जाए इस बात का डर राष्ट्रीय पार्टियों को हमेशा बना रहता है। नतीज़तन किसी राज्य विशेष की समस्याएं आगामी पांच वर्षों की चुनावी घोषणाओं के लिए छोड़ दी जाती हैं।
अब प्रश्न ये है कि राष्ट्रीय पार्टियों को देश भर में सत्ता चाहिए और प्रादेशिक जनता को अपना हित तो जीत किसकी हो? इसी प्रश्न पर आकर राज्यों की प्रगति और विनाश की कथा लिखी जाती है। आगे पढ़िए
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जिस राज्य के लोगों ने क्षेत्रीय पार्टियों को चुना वे अपनी क्षेत्रीय संस्कृति, भाषा और संस्कार जीवित रखने के साथ-साथ अपना जल, जंगल, ज़मीन, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार की समस्या के निराकरण में कई हद तक सक्षम रहे क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियों ने सिर्फ समस्याओं को स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार आंका और उनका समाधान खोजने का प्रयास किया।
क्षेत्रीय दल ये भी जानते हैं कि उनकी राजनीति के लिए एक सीमित दायरा है जिसके अंदर उसे जनमुद्दों पर कार्य करना ही होगा। ऐसा न करने पर उनके राजनीतिक जीवन पर विराम लग सकता है।
तो अपने कैरियर का भय और भावनात्मक राजनीति के चलते क्षेत्रीय दल किसी राज्य के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं।
उत्तराखण्ड राज्य संघर्षों से निकला राज्य है और इस राज्य को बनाने की वजह रही कि इसकी अपनी एक अलग पहचान हो भाषा के आधार पर, संस्कृति के आधार पर और अपने हक़ों के आधार पर लेकिन आज तक यहां की सत्ता में सिर्फ राष्ट्रीय दल ही क़ाबिज़ रहे और ये राष्ट्रीय दल दिल्ली से प्रदेश को संचालित करते रहे है। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन का हिस्सा रहा यहां का सबसे पुराना क्षेत्रीय दल उत्तराखण्ड क्रान्ति दल हर विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद भी सत्ता से दूर ही रहा।
उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के केन्द्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी से हमने प्रश्न किए कि क्यों उत्तराखण्ड की राजनीति में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल विफल रहा?
काशी सिंह ऐरी का जवाब था - "हमारा लक्ष्य उत्तराखण्ड राज्य को बनाना था जिसको हमनें प्राप्त भी किया लेकिन उत्तराखण्ड की राजनीति में असफल होने का पहला मुख्य कारण संगठन का कमज़ोर हो जाना रहा और दूसरा कारण संसाधनों की कमी रही।"
आने वाले उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल अपनी विफलता को सफतला में बदलने के लिए क्या कर रहा है? इस प्रश्न पर काशी सिंह ऐरी का जवाब भी जान लेते हैं - "राष्ट्रीय दलों ने उत्तराखण्ड की जनता की उम्मीदों के अनुसार कार्य नहीं किया जिस कारण जनता अब हम से उम्मीद लगा रही है और हमसे जुड़ भी रही है। रणनीति के तहत हम उत्तराखण्ड की हर विधान सभा के लिए योग्य प्रत्याशी चिन्हित कर रहे हैं साथ ही बूथ स्तर पर दल को मजबूत करने में लग चुके हैं।"
उत्तराखण्ड राजनीतिक विशेषज्ञ इंद्रेश मैखुरी ने उत्तराखण्ड में क्षेत्रीय दलों की विफलता का जो कारण बताया उसको संज्ञान में लेने की ज़रूरत है। उनका मानना है कि "पूर्व में क्षेत्रीय दलों की जो आंदोलनकारी शक्तियां थी उनका मोह और निर्भरता राष्ट्रीय दलों की तरफ रही। उत्तराखण्ड की जनता का मिज़ाज भी राष्ट्रीय दलों वाला ही रहा है। अभी के हालात देखकर परिवर्तन की गुंजाइश कम लगती है बाकि आने वाला वक़्त तय करेगा।"
जिन परिकल्पनाओं के आधार पर उत्तराखण्ड राज्य का निर्माण किया गया वो आज भी अधूरी ही हैं। जनता अपनी उम्मीदें क्षेत्रीय दल से लगाने लगी हैं और क्षेत्रीय दल जनता से उम्मीद लगाए बैठे हैं।
क्षेत्रीय दल अपने आप को जनमानस के सामने किस रूप में परोस पाएंगे और जनता उन्हें दिल की किस गहराई तक स्वीकार कर पाएगी। इसका राज़ आने वाले विधान सभा चुनाव की ई0वी0एम0 मशीन ही खोल पाएगी।