उत्तराखंड: पलायन रोकने में मददगार साबित हो रही मेडिसिनल प्लांट की खेती, महिलाओं को मिला रोजगार
रानीगढ़ पट्टी क्षेत्र के कोट-मल्ला में पलायन रोकने के लिए मिशन सुगंधित औषधीय पादप शुरू किया गया है. इससे स्थानीय महिलाओं को रोजगार मिला है
Sep 6 2021 6:43PM, Writer:साक्षी बड़थ्वाल
एक तरफ पलायन के चलते गांव-पहाड़ खाली होते जा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ ऐसी शानदार तस्वीरें भी देखने को मिल रही हैं, जो पलायन को मुंह चिढ़ाती दिखती हैं। ऐसी ही शानदार तस्वीरें रुद्रप्रयाग से सामने आई हैं, जहां रानीगढ़ पट्टी क्षेत्र के कोट-मल्ला में पलायन रोकने के लिए मिशन सुगंधित औषधीय पादप शुरू किया गया है. इससे न सिर्फ स्थानीय महिलाओं को रोजगार मिला है, बल्कि राज्य की आर्थिकी को भी लाभ मिलने की उम्मीद भी है हम सब जानते हैं की पलायन उत्तराखंड की सबसे बड़ी विडंबना रही है। सालों से लोग रोजगार की तलाश में गांव से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं मगर अब भी उत्तराखंड में कुछ ऐसे गांव हैं जिनसे उम्मीद बंधी हुई है, जिन्होंने अब भी पहाड़ों से आजतक कभी शहरों की ओर रुख नहीं किया ऐसा ही एक गांव रुद्रप्रयाग जिले में भी है जहाँ विदेशों में उगने वाले रोजमेरी व डेंडेलियान मेडिसिनल प्लांट की खेती की जा रही है.बता दें की 100 से अधिक महिलाओं को इससे रोजगार मिला है. साथ ही ग्रामीण इलाकों में हो रहे पलायन पर भी कुछ हद तक अंकुश लगा है
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रानीगढ़ पट्टी क्षेत्र में पलायन को रोकने के लिए कोट-मल्ला में एक सफल प्रयोग करते हुए मिशन सुगंधित औषधीय पादप शुरू हो चुका है गांव के किसानों की आर्थिक सुधार एवं पलायन पर रोक लगाने के लिए एक हेक्टेयर भूमि में ग्रामीण महिलाओं के साथ ये काम शुरू किया गया है बता दें की पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली के अथक प्रयासों और कृषि विभाग रुद्रप्रयाग के सहयोग से औषधीय गुणों से भरपूर रोजमेरी तथा डेंडेलियान के पौधों का रोपण ग्रामीण महिलाओं के साथ शुरू किया गया है साथ ही इसके लिए रोजमेरी जैसे महत्वपूर्ण पादप पर काम कर रहे मेन ऑफ रोजमेरी अजय पंवार की संस्था धार विकास ने कोट मल्ला के ग्रामीणों को रोजमेरी की पौध उपलब्ध कराये हैं . साथ ही उनके द्वारा ग्रामीण महिलाओं को भी प्रशिक्षण दिया गया है बता दें की डेंडेलियान और रोजमेरी की राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भारी डिमांड है. डेंडेलियान की जड़ 300 रुपये किलो बिकती है. इसका इस्तेमाल शारीरिक क्षमता बढ़ाने, तनाव को दूर करने, रक्तचाप, शुगर में किया जाता है. इसकी फूल व पत्ती भी बिकती है. इनका इस्तेमाल चाय के लिए होता है. वहीं, रोजमेरी का उपयोग ग्रीन टी में किया जाता है.
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बता दें की कोट-मल्ला में डेंडेलियान की 40 हजार व रोजमेरी की 30 हजार पौध लगाई गई हैं. इन पौधों की देखभाल का जिम्मा भी ग्रामीणों को सौंपा गया है. क्षेत्र की महिलाएं औषधीय प्लांट को लेकर काफी उत्साहित हैं. 100 से अधिक महिलाएं इस काम में लगी हुई हैं साथ ही जिलाधिकारी मनुज गोयल भी कोट-मल्ला पहुंचकर महिलाओं के प्रयास की तारीफ कर चुके हैं बता दें की डेंडेलियान और रोजमेरी की राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय मार्केट में डिमांड है. ये विदेशी पौंधे हैं. डेंडेलियान की जड़ तीन सौ रुपए किलो बिकती है. रोजमेरी की फसल डेढ़ साल में तैयार हो जाती है, जबकि डेंडेलियान की पत्तियां 6 माह में तैयार हो जाती हैं. लीवर को स्वस्थ रखने के लिए इसकी चाय काफी लाभदायक है. साथ ही पाचन तंत्र, स्कीन और शरीर में एनर्जी रहती है. वजन घटाने में भी काफी लाभदायक है