रुद्रप्रयाग की बबीता, पिता की मदद के लिए थामा हल.. मशरूम की खेती से संवारी किस्मत
गांव में खेती और मशरूम उत्पादन करने वाली बबीता स्वरोजगार की मिसाल बनकर उभरी हैं। उनके जरिए गांव की दूसरी महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन रही हैं।
Oct 30 2021 10:56AM, Writer:komal negi
गम और संघर्ष किसकी जिंदगी में नहीं है। कुछ लोग इनके आगे घुटने टेक देते हैं तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो परेशानियों को जीवन की अहम पाठशाला मान, संघर्ष से सफलता तक का सफर तय करते हैं। रुद्रप्रयाग के छोटे से गांव सौड़ उमरेला में रहने वाली बबीता रावत ऐसी ही शख्सियत हैं। गांव में खेती और मशरूम उत्पादन करने वाली बबीता स्वरोजगार की मिसाल बनकर उभरी हैं। उनके जरिए गांव की दूसरी महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन रही हैं। बबीता खेती करने के साथ ही मशरूम उत्पादन से जुड़ी हैं। खेती, मशरूम और दुग्ध उत्पादन को रोजगार का जरिया बनाकर वो हर महीने 15 से 20 हजार की कमाई कर रही हैं। 7 भाई-बहनों के परिवार में बबीता पांचवे नंबर पर हैं। उनके पिता सुरेंद्र सिंह रावत की तबीयत खराब रहती है, इसलिए परिवार को संभालने की जिम्मेदारी बबीता के कंधों पर है। बबीता ने 20 साल की उम्र से खेती का कार्य शुरू किया।
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स्कूल के दिनों में बबीता हर रोज सुबह सवेरे अपने खेतों में काम करने के बाद 5 किमी पैदल चलकर स्कूल जाती थीं और साथ में दूध भी बेचती थीं। धीरे-धीरे वो सब्जी उत्पादन से जुड़ीं और अब वो मशरूम का उत्पादन भी कर रही हैं। इस मेहनती बेटी ने खेतों में काम कर के न सिर्फ पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठाई, बल्कि अपनी पढ़ाई का खर्च भी वहन किया। वो खेतों में खुद हल लगाती थीं। खेती से जो पैसे जुटे, उससे बबीता ने चार बहनों की शादियां भी संपन्न करवाई। बबीता अब गांव-गांव जाकर महिलाओं को स्वरोजगार के प्रति जागरूक करती हैं। उनके कार्यो को देखते हुए राज्य सरकार ने भी बबीता रावत को प्रतिष्ठित तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित किया है। बबीता को जिला स्तर पर भी कई बार सम्मानित किया जा चुका है। आर्थिक तंगी के बाद भी बबीता ने हार नहीं मानी, और मेहनत करती रहीं। आज उनकी कहानी पहाड़ की महिलाओं और युवतियों के लिए प्रेरणा बन गई है।