गढ़वाल: 90 साल की रुक्मणी दादी, 80 साल से गा रही हैं ‘पांडवाणी’..बचाई रखी अनमोल विधा
जिस उम्र में ज्यादातर लोग खुद को लाचार मान लेते हैं, उस उम्र में Rukmani Purohit Pandwani Singing विधा को बचाए रखने की जद्दोजहद में जुटी हैं।
Dec 27 2021 8:44PM, Writer:कोमल नेगी
उत्तराखंड की संस्कृति, लोक विधाएं और बोली-भाषा हमारी धरोहर हैं। बदलते वक्त के साथ युवा पीढ़ी लोक कलाओं से लगाव खोने लगी है, लेकिन अब भी कुछ लोग हैं, जो सबकुछ भूलकर इन्हें संजीवनी देने की कोशिश में जुटे हैं। चमोली की रहने वाली 90 साल की Rukmani Purohit Pandwani Singing विधा की ऐसी ही शख्सियत हैं। जिस उम्र में ज्यादातर लोग खुद को लाचार मान लेते हैं, उस उम्र में रुक्मणी पुरोहित पांडवाणी गायन विधा को बचाए रखने की जद्दोजहद में जुटी हैं। चमोली जिले की बंड पट्टी के दिगोली और पैनखंडा के पांखी गांव में इन दिनों पांडव नृत्य का मंचन हो रहा है।
सब कहते हैं पांडवाणी दादी
दिगोली गांव में हो रहे आयोजन की खास बात ये है कि इसमें रुक्मणी पुरोहित पांडवाणी गायन कर रही हैं, जिनका गायन हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है। यही वजह है कि क्षेत्र में सब उन्हें पांडवाणी दादी कहकर पुकारते हैं। रुक्मणी देवी दशोली ब्लॉक के बंड पट्टी के दिगोली गांव की रहने वाली हैं। वो पिछले 80 सालों से पांडवाणी लोकगायन के जरिए पांडवों की गाथा गाती आ रही हैं। पांडवाणी लोकगायन ऐसी विधा है, जिसमें पुरुषों का ही वर्चस्व रहा है, लेकिन रुक्मणी पुरोहित इस मिथक को तोड़ रही हैं। आगे पढ़िए
पांडवाणी दादी के बेटे हरीश पुरोहित कहते हैं कि मां को पांडवों की पूरी गाथा कंठस्थ याद है। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें मां से इस अनमोल विरासत को सुनने का अवसर मिला। रुक्मणी पुरोहित को पांडवाणी गायन की दीक्षा अपने पिता कुलानंद तिवारी से विरासत में मिली। वह बचपन में पिता से महाभारत की कथा सुना करती थीं। पांडवाणी के जरिए उन्होंने पांडवों की गाथा को आत्मसात कर लिया।
उत्तराखंड की अनूठी परम्परा है पांडव नृत्य
उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों में हर साल नवंबर से फरवरी तक पांडव नृत्य का आयोजन होता है। घर और गांव की खुशहाली के लिए होने वाला यह आयोजन दस से 12 दिन तक चलता है। पांडवाणी दादी भी गांव में होने वाले आयोजन में पांडवाणी गायन कर रही हैं। वो कहती हैं कि जब मैं सिर्फ दस साल की थी, तभी से पांडवाणी गाने लगी और आज भी गा रही हूं। नई पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि वह अपनी गौरवशाली संस्कृति को संजोकर रखे और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाए। चमोली की पांडवाणी दादी यानी Rukmani Purohit, Pandwani Singing विधा को 80 सालों से संजोए हुए है, ये अनुकरणीय और प्रेरणादायी है।