उत्तराखंड के लिए खतरे का संकेत, खोखले हो रहे हैं पहाड़..बड़े भूस्खलन का डर
खड़िया खनन की मंजूरी देकर सरकार ने सरकारी खजाना भरने की तो सोची, पर पहाड़ों का क्या होगा ये नहीं सोचा। आगे पढ़िए पूरी रिपोर्ट...
Dec 31 2021 1:32PM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क
प्राकृतिक आपदा के लिहाज से उत्तराखंड बेहद संवेदनशील राज्य है। बीते सालों में यहां भूस्खलन और ग्लेशियर खिसकने की घटनाएं बढ़ी हैं, लेकिन इनसे सबक लेने के बजाय सरकारी खजाना भरने के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। खड़िया खनन की मंजूरी देकर सरकार ने सरकारी खजाना भरने की तो सोची, पर पहाड़ों का क्या होगा ये नहीं सोचा।
Terrible Danger of Landslide Due to Mining:
अब बागेश्वर का ही मामला ले लें। यहां लगातार हो रहे खनन से पहाड़ियां खोखली हो गई हैं। खनन ने न सिर्फ शहर की खूबसूरती खत्म की, बल्कि कई गांवों को तबाही के कगार पर भी लाकर छोड़ दिया। यह जिला जोन फाइव में है, जो कि भूकंपीय दृष्टि से अतिसंवेदनशील माना जाता है। इस बात को दरकिनार कर बेतहाशा खनन के पट्टे जारी किये जा रहे हैं। कम समय में अच्छे मुनाफे के खेल में पर्यावरण को ताक पर रख दिया गया है। साल 2011 में यहां 30 खदानें थीं, जो 2021 आते-आते 107 तक पहुंच गई। यही नहीं 300 अन्य लोगों ने आवेदन भी किया हुआ है।
खनन क्षेत्र के आस-पास भूस्खलन के कारण कई गांव खतरे की जद में हैं। लाखों टन खड़िया निकालने से पहाड़ धीरे-धीरे खोखले हो रहे हैं। पुराने जलस्रोत, नाले और धारों का अस्तित्व संकट में है।
सरकार जिम्मेदार ?
वहीं अधिकारी पहाड़ों में हो रही इस तबाही के लिए सरकार को जिम्मेदार बता रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार देहरादून से फाइल मंजूर कर रही है। जिलास्तर पर ज्यादा से ज्यादा राजस्व बटोरने का दबाव अलग से बना रही है। जिले में खड़िया खनन से लगभग 150 करोड़ का कारोबार हो रहा है। जिससे खनन कारोबारियों की जेबें तो भरती ही हैं, लगभग 25 करोड़ का राजस्व सरकार की झोली में भी जाता है। मुनाफे के इस खेल में पर्यावरण को बड़ा नुकसान हो रहा है। एडवोकेट हरीश जोशी कहते हैं कि भारी भरकम मशीनों के खड़िया दोहन से यहां पहाड़ों पर खतरा मंडरा रहा है। अगर सरकार इसी तरह पहाड़ का सीना चीरती रही तो न पहाड़ बचेंगे और न यहां के गांव। अंधाधुंध खड़िया खनन पहाड़ ही नहीं हिमालय के लिये भी खतरा बन गया है।