image: inspiring story of Prakash Bhatt of Champawat

पहाड़ का प्रकाश: पिता नहीं हैं, मां को कैंसर, खुद देख नहीं सकता..लेकिन गांव में भरा शिक्षा का उजाला

प्रकाश भले ही अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके, लेकिन आज वो गांव के बच्चों की जिंदगी को शिक्षा के उजाले से रौशन करने में जुटे हैं।
Jan 22 2022 4:34PM, Writer:कोमल नेगी

कुछ लोग मिसाल बनकर कई जिंदगियों को रौशन कर जाते हैं। चंपावत के रहने वाले प्रकाश भट्ट ऐसी ही शख्सियत हैं। प्रकाश की एक आंख बचपन से ही खराब थी, बाद में दोनों आंखों की रोशनी चली गई। प्रकाश की जिंदगी में कई मुश्किलें आईं, पर उन्होंने विपरित परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारी। प्रकाश भले ही अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके, लेकिन आज वो गांव के बच्चों की जिंदगी को शिक्षा के उजाले से रोशन करने में जुटे हैं। चंपावत जिले में एक गांव है अमोड़ी। प्रकाश भट्ट यहीं रहते हैं। वो कक्षा एक से पांच तक के बच्चों को हिंदी और अंग्रेजी वर्णमाला, पहाड़े, ककहरा, अंग्रेजी और हिंदी की कविताओं को साथ उन्हें पर्यावरण संबंधी विषय मौखिक रूप से पढ़ाते हैं। प्रकाश ऐसे शख्स हैं, जिनकी कोशिशों को लोग सलाम करते हैं। इस वक्त उनके पास गांव के 15 से 20 बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं। शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन अवकाश में बच्चे सुबह और शाम दो पारियों में उनके पास पढ़ने के लिए पहुंचते हैं। बच्चों को पढ़ाकर ही प्रकाश अपना गुजारा कर रहे हैं। प्रकाश की एक आंख बचपन से ही खराब थी। नौवीं कक्षा की पढ़ाई करते-करते उनकी दूसरी आंख की रोशनी भी चली गई। आगे पढ़िए

साल 2007 से उन्हें पूरी तरह दिखना बंद हो गया। प्रकाश की जिंदगी बेहद मुश्किल भरी रही है। साल 2004 में उनके पिता का निधन हो गया था। माता त्रिलोकी देवी भी कैंसर से जूझ रही हैं। दो भाई और दो बहनों के परिवार में प्रकाश दूसरे नंबर के हैं। दिव्यांगता की वजह से उन्होंने विवाह नहीं किया। वो बच्चों को पढ़ाकर और दिव्यांग पेंशन के रूप में मिलने वाले 1200 रुपये से परिवार चलाने में भाई की मदद कर रहे हैं। उनके पास न तो राशन कार्ड है और न ही आवास प्रमाण पत्र। डॉक्टरों ने उन्हें आंखों का ऑपरेशन कराने की सलाह दी है, लेकिन उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। प्रकाश के गांव में सड़क तक नहीं है। ऐसे में दिव्यांग पेंशन लेने के लिए चंपावत पहुंचने में प्रकाश को काफी दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए 10 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है। ग्रामीण बताते हैं कि आंखें खराब होने के बाद भी प्रकाश बचपन से ही होनहार रहे हैं। किसी पाठ को पढ़ लेने के बाद वो उसे हमेशा याद रख लेते हैं। राज्य समीक्षा के माध्यम से हम सरकार, प्रशासन और स्वयं सेवी संगठनों से प्रकाश की मदद की अपील करना चाहते हैं, ताकि उनकी जिंदगी थोड़ी आसान बन सके।


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