image: Cash and liquor is being distributed in Uttarkashi before the elections

उत्तरकाशी के गांवों में कौन बांट रहा है शराब, मुर्गा, कैश? कौन लगा रहा है वोटों की बोली

चुनाव आयोग और पुलिस का दावा था कि धन-बल और प्रलोभन से चुनाव को प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा, लेकिन इन दावों का सच जानना हो तो पहाड़ों के गांवों में चले आइए।
Feb 13 2022 8:20PM, Writer:कोमल नेगी

प्रदेश में चुनाव प्रचार थम गया है, लेकिन शराब पार्टियों का दौर लगातार जारी है। आचार संहिता लगने के बाद एक महीने के भीतर प्रदेश में करोड़ों की शराब और नशीले पदार्थ पकड़े गए। चुनाव आयोग और पुलिस प्रशासन का दावा था कि धन-बल और प्रलोभन से चुनाव को प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा, लेकिन इन दावों का सच जानना हो तो पहाड़ों के गांवों में चले जाइए। जहां मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रत्याशी शराब का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। उत्तरकाशी प्रदेश के ऐसे ही जिलों में से एक है, जहां गांव-गांव में मांस और मदिरा की पार्टी चल रही है। जिले की तीनों विधानसभाओं में राजनीतिक दल और प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के हथकंडों का इस्तेमाल कर रहे हैं। वोटर को शराब और मांस की पार्टी में आमंत्रित किया जा रहा है, जहां वोटों की बोलियां लग रही हैं। शराब और मुर्गा के अलावा नगदी, मोबाइल, साड़ियां और बर्तन जैसे सामान भी खूब बंट रहे हैं।

एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता बताते हैं कि यमुनोत्री विधानसभा के गांवों में असली चुनाव प्रचार रात 9 बजे के बाद शुरू हो रहा है। हर गांव में शराब पीने वालों की भीड़ इकट्ठा हो रही है। यहां हर दिन शादियों की कॉकटेल पार्टी सा मंजर है और खूब दावतें उड़ाई जा रही हैं। सुनने में तो ये भी आ रहा है कि पहले से बनाई प्लानिंग के तहत जब गांव में शराब, मुर्गा और पैसा बंट रहा है तो उस वक्त गांव की बिजली कट कर दी जाती है। वोट पक्का करने के लिए प्रत्याशी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे। सामाजिक संगठन से जुड़े लोगों ने इस पर गहरी चिंता जताई है। उनका कहना है कि वर्तमान में चुनाव विकास के मुद्दे से हट कर शराब और धन-बल में आ चुका है। लोगों की मानसिकता भी यही हो गई है। लोकतंत्र में चुनाव हमें अपने एक अच्छे नेता को चुनने का अवसर देता है। जो देश और प्रदेश में वर्तमान के साथ भविष्य का खाका खींच सके। इसी उद्देश्य को लेकर जनता अपने जनप्रतिनिधियों को चुनती है, लेकिन वर्तमान में चुनाव की परिभाषा पूरी तरह बदल चुकी है। लोकतंत्र के लिए ये शुभ संकेत नहीं है।


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