उत्तराखंड की हवा में जहर: दिल्ली जैसी जानलेवा हुई पहाड़ों की आबोहवा, जानिए अपने जिले का हाल
जंगलों में लगी आग से ग्लेशियर गलने की रफ्तार बढ़ सकती है। जो कि पर्यावरण और वन्यजीवन के लिए बड़ा खतरा है। पढ़िए Uttarakhand की Air Quality Index
May 2 2022 11:26AM, Writer:कोमल नेगी
खूबसूरत वादियों और स्वच्छ आबोहवा के लिए मशहूर उत्तराखंड को प्रदूषण की नजर लग गई है। जंगल में लगी आग से न सिर्फ ग्लेशियरों को खतरा है, बल्कि पानी, हवा और मिट्टी भी जहरीली हो रही है।
Air Quality Index Uttarakhand
पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जैसे पहाड़ी जिलों की हवा का दिल्ली जैसा हाल होना शुरू हो गया है। सबसे पहले पिथौरागढ़ जिले की बात करते हैं। यहां जंगल में लगी आग से ग्लेशियरों में ब्लैक कार्बन जमने का खतरा है। इससे ग्लेशियर गलने की रफ्तार भी बढ़ सकती है। जो कि पर्यावरण और वन्यजीवन के लिए बड़ा खतरा है। पराली जलाए जाने से हवा दूषित हो रही है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें पैदा हो रही हैं। हालात ये हैं कि आम तौर पर जहां पर्यावरण में ब्लैक कार्बन 2 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होता था, वहीं इन दिनों ये 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पहुंच गया है।
बागेश्वर में भी पराली जलने से हवा जहरीली हुई है। आसमान में सफेद धुंध छाई है। लोगों में आंखों और सांस रोगों की शिकायतें बढ़ रही हैं। अस्पताल में मरीज बढ़ गए हैं। उत्तरकाशी का भी बुरा हाल है। यहां गंगा, यमुना घाटी और टौंस घाटी के पास के जंगलों में लगी आग विकराल होने से घाटियों में धुआं ही धुआं छाया हुआ है। लोग आंखों में जलन, लालपन, सांस लेने में दिक्कतें, गले और एलर्जी की शिकायतें लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं। इस तरह पराली वाली समस्या अब दिल्ली से निकलकर उत्तराखंड पहुंच गई है। जंगलों में धधक रही आग भी परेशानी बढ़ा रही है। उत्तराखंड में फॉरेस्ट फायर सीज़न 15 फरवरी के आसपास से शुरू होता है। जीबी पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान वैज्ञानिक डॉ. जेसी कुनियाल कहते हैं कि जंगल में आग लगना पेड़-पौधों, ग्लेशियरों, पेयजल स्रोतों के साथ ही मिट्टी के लिए भी खतरनाक है। इससे प्रकृति, जीवों और लोगों की सेहत को जो नुकसान हो रहा है, उसका खमियाजा लम्बे समय तक चुकाना पड़ सकता है।