हर उत्तराखंडी के लिए हैरान कर देने वाली खबर...गोमुख ग्लेशियर से मिले तबाही के संकेत !
Apr 19 2017 6:35PM, Writer:मीत
उत्तराखंड को यूं तो देवभूमि कहा जाता है, लेकिन कई बार ऐसा हुआ है, जिससे हर कोई सन्न रह गया। केदारनाथ आपदा इसका सबसे बड़ा उदाहरण भी है। इस बीच हम आपके लिए एक और बड़ी खबर लेकर आए हैं। गोमुख ग्लेशियर में जो कुछ हो रहा है, वो सच में हैरान कर देने वाला है। बताया जा रहा है कि ग्लोबल वॉर्मिंग का असर इस ग्लेशियर पर दिखने लगा है। इस वजह से इस ग्लेशियर का एक हिस्सा टूट रहा है। क्या ये किसी बड़े संकट का संकेत है ? इस बारे में भी हम आपको बताएंगे। इसके साथ ही आपको ये भी बताएंगे कि आखिर गोमुख में ऐसी कौन सी नेचुरल हरकतें हो रही हैं, जिस वजह से आगे आने वाले वक्त में ये बड़ा खतरा भी बन सकता है। एक बार फिर से धरती मानव जाति को संदेश दे रही है कि खिलवाड़ बंद कीजिए। दरअसल गंगोत्री नेशनल पार्क के गेट खुलने के बाद गोमुख ग्लेशियर की ताजा रिपोर्ट सामने आई है। ये ताजा रिपोर्ट हर किसी के लिए हैरान कर देने वाली खबर से कम नहीं है।
ग्लेशियर की ताजा तस्वीरें देखने के बाद वैज्ञानिकों का दावा है कि ग्लेशियर के आगे का करीब 50 मीटर हिस्सा भागीरथी के मुहाने पर गिरा हुआ है। हालांकि, गोमुख में तापमान कम होने के कारण ये हिस्सा पिघलना शुरू नहीं हुआ है। पंडित गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान के वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लेशियर के आगे का जो हिस्सा टूटकर गिरा है, उसमें 2014 से बदलाव नजर आ रहे हैं। वैज्ञानिक इसकी मुख्य वजह चतुरंगी और रक्तवर्ण ग्लेश्यिर का गोमुख ग्लेशियर पर बढ़ता दबाव मानते हैं। आपको बता दें कि पंडित गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान की टीम साल 2000 से गोमुख ग्लेशियर पर रिसर्च कर रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक 28 किलोमीटर लंबा और दो से चार किलोमीटर चौड़ा गोमुख ग्लेशियर तीन और ग्लेशियरों से घिरा है। इसके अलावा भी इस ग्लेशियर के बारे में बहुत सारी बातें सुनने को मिल रही हैं, जिनके बारे में हम आपको विस्तार से बता रहे हैं।
इसके दाईं ओर कीर्ति और बाईं ओर चतुरंगी और रक्तवर्ण ग्लेशियर हैं। संस्थान के वैज्ञानिक ने बताया कि ग्लेशियर की जो ताजा तस्वीरें और वीडियो उन्हें मिले हैं, उनसे पता चलता है कि गोमुख ग्लेशियर के दाईं ओर का हिस्सा आगे से टूटकर गिरा पड़ा है। इसके कारण गाय के मुख यानी गोमुख की आकृति वाला हिस्सा दब गया है। इस हिस्से में दल वर्ष 2014 में ये महत्वपूर्ण बदलाव देख रहा था। आपको बता दें कि दल हर साल मई से नवंबर तक ग्लेशियर की रिसर्च करता आ रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार हालांकि ग्लेशियरों में परिवर्तन एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन ये बदलाव महत्वपूर्ण है। जहां तक क्रेवास बनने का सवाल है तो वो ग्लेशियर के मूवमेंट के कारण होता है। बताया कि ग्लेशियर की पूरी रिपोर्ट के लिए मई में टीम फिर गोमुख जाकर अध्ययन करेगी। कुल मिलाकर कहें तो एक बार फिर से सचेत रहने का वक्त आ गया है। प्रकृति बार बार आपको संदेश दे रही है कि उससे खिलवाड़ करना बंद कर दीजिए वरना अंजाम बहुत बुरा होगा।