Jaswant Singh Rawat: वो शहीद जिसके कपड़ों पर आज भी होती है प्रेस, सेवा में लगे रहते हैं जवान
राइफलमैन जसवंत सिंह रावत Jaswant Singh Rawat के बारे में कहा जाता है कि शहीद होने के बाद भी वो सीमा पर ड्यूटी करते दिखते हैं।
Oct 18 2022 4:37PM, Writer:कोमल नेगी
कहते हैं एक सिपाही मरता नहीं, अमर हो जाता है। शरीर छोड़ देने के बाद भी वो वतन के प्रति अपना कर्तव्य निभाता है।
Story of Martyr Jaswant Singh Rawat
गढ़वाल राइफल्स के राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ऐसी ही शख्सियत हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि शहीद होने के बाद भी वो सीमा पर ड्यूटी करते दिखते हैं। 1962 के भारत चीन युद्ध में जसवंत सिंह रावत अकेले 72 घंटे तक चीनियों से लड़ते रहे। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मासनित किया गया। भारतीय सेना इस जांबाज को बाबा जसंवत के नाम से सम्मान देती है। आज उत्तराखंड के इस वीर सपूत की पुण्यतिथि है। इस मौके पर आपको उनकी वीरता की कहानी बताते हैं। पौड़ी के बीरोंखाल में एक गांव है बांड़ियू। जसवंत सिंह का जन्म यहीं हुआ। 19 अगस्त 1960 में वह 19 साल की उम्र में गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हो गए। 14 सितंबर 1961 को ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उनकी तैनाती अरुणाचल प्रदेश में चीन सीमा पर हुई। नवंबर 1962 को चौथी गढ़वाल राइफल्स को नूरानांग ब्रिज की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया। जहां राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने लांसनायक त्रिलोक सिंह और राइफलमैन गोपाल सिंह के साथ चीनी सैनिकों का मुकाबला किया। आगे पढ़िए
इस युद्ध में 3 अधिकारी, 5 जेसीओ, 148 अन्य पद और 7 गैर लड़ाकू सैनिक बलिदान हुए। इसके बाद भी चौथी गढ़वाल राइफल्स के बचे जवानों ने चीनियों को आगे नहीं बढ़ने दिया। राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने अकेले ही पोस्ट से 5 एलएमजी (लाइट मशीन गन) संभाली। वह 72 घंटों तक दुश्मनों पर गोलीबारी करते रहे। इससे दुश्मन भ्रम में पड़ गए। तब तक चीन ने अपने 300 सैनिक खो दिए थे। राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की वीरता को चीनी भी सलाम करते हैं। चीनी सेना ने जसवंत सिंह की पार्थिव देह को सलामी देकर उनकी एक कांसे की प्रतिमा भारतीय सेना को भेंट की। वह जिस पोस्ट पर बलिदान हुए थे, भारत सरकार ने उसे जसवंत गढ़ नाम दिया है। यहां आज भी बाबा जसवंत सिंह के लिए रात में बिस्तर लगाया जाता है। साथ ही खाने की थाली भी लगती है। कहते हैं कि बाबा का बिस्तर सुबह खुला हुआ मिलता है। बाबा की याद में लैंसडौन स्थित गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर में भी 'जसवंत द्वार' बनाया गया है। शहीद जसवंत सिंह Jaswant Singh Rawat की याद में एक मंदिर भी बनाया गया है, जिसमें उनसे जुड़ी चीजों को सुरक्षित रखा गया है।