गढ़वाल: पूर्व सैनिक ने प्रधान बनकर बदली गांव की तकदीर, सालाना 2 करोड़ कमाने लगे गांव वाले
बंगलो की कांडी टिहरी गढ़वाल के जौनपुर ब्लॉक में स्थित छोटा सा गांव है, लेकिन यहां का हर किसान समृद्ध है।
Dec 23 2022 5:47PM, Writer:कोमल नेगी
कहते हैं एक सैनिक भले ही सेना से रिटायर हो जाए, लेकिन ‘सेवा’ से कभी रिटायर नहीं होता। उत्तराखंड में ऐसे कई पूर्व सैनिक हैं, जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद आराम की जिंदगी बिताने के बजाय अपने गांव-क्षेत्र की खुशहाली को जिंदगी का मकसद बना लिया।
Tehri Garhwal gram pradhan sunder singh
सेवानिवृत्त हवलदार सुंदर सिंह ऐसी शख्सियत हैं। नई टिहरी के बंगलो की कांडी गांव के प्रधान बनकर सुंदर सिंह अपने गांव को समृद्ध बनाने की कवायद में जुटे हैं। उनके गांव के किसान एक साल में दो करोड़ रुपये की सब्जी और फलों का कारोबार करते हैं। जिससे उनकी आर्थिकी मजबूत हो रही है। बंगलो की कांडी जौनपुर ब्लॉक में स्थित छोटा सा गांव है, लेकिन यहां का हर किसान समृद्ध है। गांव में सौ परिवार रहते हैं, कुल आबादी करीब 800 है। साल 2019 से पहले यहां पारंपरिक तरीके से खेती-किसानी होती थी, जिस वजह से किसानों को ज्यादा मुनाफा नहीं हो रहा था। फिर इसी साल आईटीबीपी से रिटायर्ड हवलदार सुंदर सिंह गांव के प्रधान बने। सुंदर सिंह ने गांव में वैज्ञानिक तरीके से खेती शुरू की। आगे पढ़िए
आज आलम ये है कि गांव में सभी का मुख्य व्यवसाय खेती है। सिर्फ दस लोग ही ऐसे हैं जो सरकारी नौकरी कर रहे हैं, बाकि लोग खेती-किसानी में रम गए हैं। बंगलो की कांडी गांव के खेतों में कैम्प्टी फॉल के पानी से सिंचाई की जाती है। सौ परिवारों वाले इस गांव में 75 परिवारों के पास अपने मवेशी हैं। कई पॉलीहाउस बने हुए हैं। मत्स्य पालन के लिए भी दो टैंक बने हैं, जबकि दो निर्माणाधीन हैं। पूर्व सैनिक सुंदर सिंह ने गांव में रहते हुए कृषि में शानदार प्रयोग किए, और उन्हें देखकर दूसरे परिवारों ने भी ऐसा ही किया। कृषि विभाग ने भी उन्नत बीज उपलब्ध कराए और गांव वाले बेहतर पैदावार हासिल करने लगे। प्रधान सुंदर सिंह कहते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद जब मैं गांव लौटा तो मुझे एहसास हुआ कि मेरे गांव में सबसे कीमती कैम्प्टी फॉल का पानी है। इससे हम बेहतर पैदावार हासिल कर सकते हैं। हमने इस दिशा में काम किया और आज हमारा गांव कृषि उत्पादन में जिले में नंबर वन है। सुंदर सिंह हर साल पांच से छह लाख रुपये के फल और सब्जियां बेचते हैं, जबकि गांव का हर परिवार खेती के जरिए साल में डेढ़ से दो लाख रुपये की आमदनी कर रहा है। मसूरी के होटल-रिजॉर्ट में उनके उत्पादों की अच्छी डिमांड है।