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उत्तराखंड के लोग ट्रैफिक रूल्स तोड़ने में अव्वल, 700 फीसदी बढ़े नियम तोड़ने के मामले

ये हाल तब है जबकि पूरे राज्य में सड़क सुरक्षा को लेकर लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं, चालान काटने से लेकर गाड़ियां तक सीज की जा रही हैं, लेकिन लोग सुधर नहीं रहे।
Jan 20 2023 6:57PM, Writer:कोमल नेगी

उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद किसी और क्षेत्र में विकास हुआ हो या न हुआ हो, लेकिन ट्रैफिक तोड़ने वालों की तादाद में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है।

Traffic rules break rate increase in uttarakhand

ये हाल तब है जबकि पूरे राज्य में सड़क सुरक्षा को लेकर लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं, चालान काटने से लेकर गाड़ियां तक सीज की जा रही हैं, लेकिन लोग सुधर नहीं रहे। इन दिनों भी 32वां सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा है, लेकिन परिवहन विभाग के चालान के जो आंकड़े सामने आए हैं, उसे देख लगता नहीं कि इन अभियानों का कोई असर हो रहा है। ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों की संख्या हर साल बढ़ रही है। जिसके चलते वाहनों के चालान और सीज करने के मामलों में भी कई गुना बढ़ोतरी हुई है। परिवहन विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में साल 2000-01 में ट्रैफिक के नियमों को तोड़ने वालों की संख्या 12536 थी, इन मामलों में चालान कर अर्थदंड वसूला गया था। साल 2021-22 में ट्रैफिक रूल्स तोड़ने वालों की संख्या बढ़कर 92092 पहुंच गई। इस तरह राज्य बनने के बाद से नियम तोड़ने वालों की संख्या में पिछले 21 साल में करीब 700 गुना की बढ़ोतरी हुई है। आगे पढ़िए

चालान के साथ सीज वाहनों की संख्या और कंपाउंडिंग की राशि में भी करीब 17 गुना वृद्धि हुई है। परिवहन विभाग के आंकड़ों के अनुसार जहां 2001-02 में 125 लाख रुपये कंपाउंडिंग से वसूले गए तो वहीं 2021-22 में विभाग ने 2161 लाख की वसूली की। सबसे ज्यादा वसूली 2019-20 में की गई, जो कि 2674 लाख थी। सीज किए गए वाहनों की संख्या साल 2000-01 में 2641 थी, जो कि 2021-22 में बढ़कर 4416 तक पहुंच गई। आरटीओ संदीप सैनी कहते हैं कि ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन के मामले बढ़े हैं। हालांकि परिवहन विभाग का लोगों को जागरूक करने व नियमों का पालन कराने पर जोर है, ताकि दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके। सरकार के साथ पुलिस, परिवहन विभाग और परिवहन निगम मिलकर सड़क सुरक्षा सप्ताह मना रहे हैं, सोशल मीडिया पर भी लोगों को खूब जागरूक किया जा रहा है, लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि सुधार जैसी स्थिति देखने को नहीं मिल रही।


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