उत्तराखंड: उड़द की दाल से बन रहा है डांडा नागराज मंदिर, देवता के आदेश पर शुरू हुआ निर्माण
एक वक्त था जब उत्तराखंड में इमारतें बनाने के लिए उड़द की दाल का इस्तेमाल किया जाता था, उत्तरकाशी में वो पुराना दौर फिर लौट आया है।
Apr 22 2023 12:20PM, Writer:कोमल नेगी
अगर आपको उत्तराखंड के इतिहास में जरा सी भी दिलचस्पी है तो आप यहां की विशिष्ट भवन निर्माण शैली के बारे में भी जरूर जानते होंगे।
Danda Nagaraja Temple is preparing from Urad Dal
एक वक्त था जब यहां इमारतें बनाने के लिए उड़द की दाल का इस्तेमाल किया जाता था। समय बदला और फिर ईंट, गारे, सीमेंट से इमारतें बनने लगीं, लेकिन उत्तरकाशी में वो पुराना दौर एक बार फिर लौट आया है। यहां भंडारस्यूं क्षेत्र में डांडा नागराजा का मंदिर बनवाया जा रहा है। जिसके निर्माण में उड़द की दाल का प्रयोग किया जा रहा है। ग्रामीण अपने घरों से उड़द लाकर मंदिर में दान कर रहे हैं, ताकि इससे मंदिर बनाया जा सके। ऐसा करने की वजह भी बेहद रोचक है। बताया जा रहा है कि देवडोली के आदेश पर मंदिर निर्माण में किसी भी प्रकार के सीमेंट और रेत-बजरी का प्रयोग नहीं किया जा रहा। इसकी जगह उड़द की दाल का इस्तेमाल किया जा रहा है।
डांडा नागराज मंदिर समिति के अध्यक्ष विजेन सिंह कुमांई ने बताया कि देवता की देवडोली ने आदेश किया है कि उनके मंदिर निर्माण में सीमेंट और रेत बजरी का प्रयोग न किया जाए। उसके स्थान पर उड़द (काली दाल) का प्रयोग किया जाए। ग्रामीण अपनी श्रद्धा से घरों से उड़द की दाल पीस कर मंदिर समिति को दे रहे हैं। उत्तरकाशी की गंगा-यमुना घाटी अपनी खास भवन निर्माण शैली के लिए मशहूर है। यहां के गांवों में पंचपुरा सहित ढैपुरा शैली के मकान सबसे ज्यादा बनाए जाते हैं। इन भवनों में पूरे संयुक्त परिवार सहित मवेशियों के रहने की व्यवस्था होती है। बदलते वक्त के साथ अब मकानों का स्वरूप भी बदलने लगा है। हालांकि विलुप्त होती भवन शैली को बचाने के लिए जुणगा-भंडारस्यूं के ग्रामीणों ने एक नई शुरुआत की है। करीब 10 से 11 गांव के ग्रामीण निर्माण में सहयोग कर रहे हैं। मंदिर का निर्माण कार्य एक साल में पूरा होने की उम्मीद है।