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केदारनाथ पैदल मार्ग सुरक्षित नहीं है, पहाड़ से पत्थर गिरने से अब तक 16 यात्रियों की मौत

सुरक्षित नहीं है केदारनाथ का पैदल मार्ग, छह साल में पहाड़ी से बोल्डर गिरने से अबतक 16 यात्रियों की हो चुकी है मौत
Aug 5 2023 6:07PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल

रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ मार्ग में बीती रात को दिल दहला देने वाला हादसा हो गया। यहां भारी बारिश के दौरान हुए भूस्खलन की घटना में दस दुकानें ध्वस्त हो गईं।

Kedarnath trek is not safe for pilgrims

इस हादसे के दौरान में दुकानों में सो रहे 13 लोगों का पता नहीं चल सका है। जिनकी तलाश में एसडीआरएफ की टीम जुटी हुई है। दरअसल केदारनाथ धाम यात्रा के मुख्य पड़ाव गौरीकुंड में डाट पुलिया के समीप पिछली रात्रि करीब पौने बारह बजे भारी बारिश के दौरान पहाड़ी दरक गई। पानी और मलबे के एक साथ बहाव में दस दुकानें एवं खोके बह जाने की खबर सामने आई है। इससे यह तो साफ हो गया है कि केदारनाथ तक का पहुंच मार्ग अब भी सुरक्षित नहीं है। आपदा के दस साल बीत जाने के बावजूद यहां पर अब भी रिस्क है। चलिए आपको आंकड़े बताते हैं जो कि यह स्टेटमेंट खुद साबित कर देंगे। बीते छह वर्षों में पैदल मार्ग पर यात्रा के दौरान पहाड़ी से गिरे पत्थरों की चपेट में आने से 16 यात्रियों की मौत हो चुकी है। 16 मासूम लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन? ड्रीम प्रोजेक्ट बनाने के बाद भी आज भी केदारनाथ के पैदल मार्ग में सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। इन दिनों बारिश में कई जगहों पर निरंतर पत्थर गिरने का खतरा बना है। आगे पढि़ए

केदारनाथ तक पहुंचने के लिए गौरीकुंड से 16 किमी पैदल दूरी तय करनी होती है। यह रास्ता शुरू से ही भूस्खलन को लेकर अति संवेदनशील है। बीते 6 सालों में सबसे पहली घटना 2017 में छौड़ी में हुई। यहां पहाड़ी से गिरे पत्थर के कारण एक यात्री की खाई में गिरने मौत हो गई थी। इसी वर्ष चिरबासा में भी पहाड़ी से गिरे पत्थर से एक महिला यात्री की मौत हो गई थी। वर्ष 2018 में भीमबली में भूस्खलन से एक, 2018, 2019 में दो-दो यात्रियों की पत्थर लगने से मौत हो गई थी। बीते वर्ष 2022 में सोनप्रयाग से छानी कैंप तक बोल्डर और पत्थरों के कारण 6 यात्रियों की मौत हो गई थी। वहीं इस वर्ष 25 अप्रैल से शुरू हुई केदारनाथ यात्रा में अभी तक पत्थर लगने से तीन लोगों की मौत हो चुकी है,जिससे जाहिर है कि केदारनाथ पैदल मार्ग पहाड़ी से (Kedarnath trek pilgrims Death) पत्थर गिरने व भूस्खलन की दृष्टि से काफी संवेदनशील है। इसके बावजूद सुरक्षा के इंतजाम दिखाई नहीं देते हैं।


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