उत्तराखंड की वादियों में बैंगनी रंगत बिखेर रहा कंडाली का फूल, ये 12 साल में एक बार खिलता है
पिथौरागढ़ के अलावा नैनीताल और चंपावत में भी कंडाली का दुर्लभ फूल देखा गया है। यह फूल 12 साल में एक बार खिलता है।
Sep 19 2023 7:21PM, Writer:कोमल नेगी
कुदरत हमें कदम-कदम पर चौंकाती है। कुमाऊं की खूबसूरत वादियों में इन दिनों कुदरत के एक ऐसे ही खूबसूरत करिश्मे का दीदार हो रहा है।
Kandali Flower Bloomed in Kumaon
यहां के पहाड़ कंडाली, बिच्छू घास या सिंसौण के फूलों से सजे हुए हैं। यह फूल हर ओर बैंगनी रंगत बिखेर रहे हैं। कंडाली से तो आप सब परिचित होंगे, लेकिन क्या आपने कभी कंडाली के फूल देखे हैं। इसके फूल विरले ही देखने को मिलते हैं, वो इसलिए क्योंकि कंडाली के फूल 12 साल में एक बार खिलते हैं। एक और खास बात ये है कि बिच्छू घास और कंडाली वनस्पति की अलग-अलग प्रजातियां हैं, बिच्छू घास का बॉटनिकल नाम Urtica dioica है जबकि कंडाली का बोटेनिकल नाम Aechmanthera gossypina है। इस फूल को जोंटिला भी कहते हैं। पिथौरागढ़ में कंडाली का उत्सव भी होता है। जब घाटी में फूलों की बैंगनी चादर बिछती है तो चौदास वैली में कंडाली फेस्टिवल मनाया जाता है। पिथौरागढ़ के अलावा नैनीताल और चंपावत में भी इस बार कंडाली का फूल देखा गया है।
जाने-माने फोटोग्राफर पद्मश्री अनूप साह ने कंडाली के फूलों की खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद किया है। अनूप साह कहते हैं कि उन्होंने ये फूल पहली बार 1975 में और फिर 1987 में देखा। इसके बाद साल 1999 और फिर 2011 में इसे देखा गया। अब 12 साल बाद 2023 में यह फूल फिर खिला है। लैंडस्केप फोटोग्राफर सुधांशु कन्नौजिया ने लोहाघाट में खिले फूलों की तस्वीरें खींची हैं। अक्टूबर महीने के आखिर में चौदास वैली में कंडाली उत्सव मनाया जाता है, जो कि पूरे एक हफ्ते तक चलता है। इस अवसर पर घाटीवासी देवताओं से समृद्धि का निवेदन करते हैं। पूजा के अवसर पर पूरी बिरादरी को अन्नादि का भोजन भी कराया जाता है। राज्य समीक्षा परंपराओं और हमारी सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने का मंच है। अगर आपके पास भी अपने क्षेत्र से जुड़ी कोई रोचक जानकारी हो तो हमारे साथ शेयर करना न भूलें।