उत्तराखंड के दो गांवों को मिला था कन्याओं का श्राप, पश्चाताप के लिए आज भी होता है अनोखा युद्ध
जौनसार बावर में दो गांव ऐसे हैं, जिन्हें आज भी दो कन्याओं के श्राप का दंश भुगतना पड़ रहा है। पढ़िए पूरी खबर
Oct 26 2023 11:58AM, Writer:कोमल नेगी
उत्तराखंड का जौनसार बावर क्षेत्र समृद्ध लोक परंपराओं के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है।
Gagli War Tradition of Jaunsar Bawar
पिछले दिनों पूरे विश्व में नवरात्र पर्व पर कन्याओं का पूजन किया गया, लेकिन जौनसार बावर के दो गांव ऐसे भी हैं, जिन्हें दो कन्याओं के श्राप का दंश आज तक भुगतना पड़ रहा है। यहां कुरौली और उदपाल्टा गांव में सदियों से पाइंता पर्व के तहत गागली युद्ध की परंपरा निभाई जा रही है। यह पर्व दो कन्याओं के श्राप के पश्चाताप में मनाया जाता है। पाइंता पर्व दो बेटियों की दुखद मृत्यु से जुड़ा है। कहते हैं सैकड़ों साल पहले गांव की दो कन्याएं रानी और मुन्नी पानी लेने कुएं के पास गई थी। दोनों में काफी गहरी दोस्ती थी, लेकिन पानी भरते समय एक कन्या का पांव फिसल गया और वो कुएं में गिर गई। इससे कन्या की मौत हो गई। इसके बाद जब दूसरी कन्या रोते हुए घर पहुंची और पूरा वाक्या ग्रामीणों को बताया तो वो सहेली को ही मौत का जिम्मेदार बताने लगे। इससे क्षुब्ध कन्या ने उसी कुएं में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। आगे पढ़िए
इस घटना के बाद कुरौली और उदपाल्टा के ग्रामीणों पर श्राप लग गया। तब से ग्रामीण अष्टमी के दिन दोनों कन्याओं की घास फूस की प्रतिमाएं बनाते हैं। दशहरे तक इनकी पूजा की जाती है। दशहरे के दिन इन प्रतिमाओं को कुएं के पास विसर्जित कर दिया जाता है। इसके बाद दोनों गांवों के लोग कियाणी में गागली के डंठलों से युद्ध करते हैं। इस अनोखे युद्ध में न तो किसी की हार होती है और न ही जीत, बल्कि लोग एक दूसरे को गले लगाकर पाइंता पर्व की बधाई देते हैं। मान्यता है कि जिस दिन पाइंता पर्व पर दोनों गांव में से किसी परिवार में दो कन्याएं जन्म लेगी, उसी दिन इस श्राप से ग्रामीणों को मुक्ति मिलेगी और सदियों से चली आ रही यह परंपरा समाप्त हो जाएगी। हर साल की तरह इस बार भी जौनसार क्षेत्र में पाइंता पर्व की धूम रही। रासो-तांदी करते ग्रामीणों का उत्साह देखते ही बन रहा था। लोग दूर-दूर से पाइंता पर्व देखने पहुंचे थे।