image: Landslide in gaumukh

उत्तराखंड पर मंडराया बड़ा खतरा, गंगोत्री ग्लेशियर टूटा, गंगा की धारा मुड़ी !

Jul 19 2017 9:36AM, Writer:सौरभ

केदारनाथ आपदा तो आपको याद ही होगी। वो आपदा जिसने लोगों का जीना दूभर कर दिया था। वो आपदा जिसकी वजह से हजारों जाने चली गई थी। क्या आप जानते हैं कि केदारनाथ आपदा क्यों आई थी ? ग्लेशियर टूटने से एक पूरी झील खाली हो गई थी, जिसके बाद हजरों जानें मौत के मुंह में समा गई थी। ऐसा ही एक बड़ा खतरा एक बार फिर से उत्तराखंड पर मंडरा रहा है। जी हां हम बात कर रहे हैं गंगोत्री गलेशियर की। दरअसल, गौमुख का बायां हिस्सा धंस गया है। इस वजह से गंगा के वेग में अचानक परिवर्तन आ गया है। इस देखकर स्थानीय लोगों के दिलों में डर समा हा है। गंगोत्री ग्लेशियर का गोमुख वाला बायां हिस्सा घंसा है। रविवार की रात किछ देर के लिए भागीरथई में अचानक पानी कम हो गया लेकिन इसके ठीक 15 मिनट बाद रेतीले पानी का सैलाब आया। गंगोत्री की तरफ ये रेतीले पानी का सैलाब आ रहा था, जिससे लोग दहशत में आ गए। स्थानीय लोगों का कहना है कि नदी का पानी भागीरथी शिला की सीढ़ियों और सुरक्षा दीवार के ऊपर तक पहुंच गया था।

इसके साथ ही बताया जा रहा है कि गोमुख का बायां हिस्सा धंसने से रक्तवन और चतुरंगी ग्लेशियर का गंगोत्री ग्लेशियर से जुड़ा हिस्सा एक किलोमीटर तक बर्फ विहीन हो गया है। नंदनवन जाने के रास्ते में भी बड़ी बड़ी दरारें पड़ी हैं। इससे पहले हमने आपको बताया था कि गंगोत्री नेशनल पार्क के गेट खुलने के बाद गोमुख ग्लेशियर की ताजा रिपोर्ट सामने आई है। ग्लेशियर की ताजा तस्वीरें देखने के बाद वैज्ञानिकों का दावा है कि ग्लेशियर के आगे का करीब 50 मीटर हिस्सा भागीरथी के मुहाने पर गिरा हुआ है। हालांकि, गोमुख में तापमान कम होने के कारण ये हिस्सा पिघलना शुरू नहीं हुआ है। पंडित गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान के वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लेशियर के आगे का जो हिस्सा टूटकर गिरा है, उसमें 2014 से बदलाव नजर आ रहे हैं। वैज्ञानिक इसकी मुख्य वजह चतुरंगी और रक्तवर्ण ग्लेश्यिर का गोमुख ग्लेशियर पर बढ़ता दबाव मानते हैं।

आपको बता दें कि पंडित गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान की टीम साल 2000 से गोमुख ग्लेशियर पर रिसर्च कर रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक 28 किलोमीटर लंबा और दो से चार किलोमीटर चौड़ा गोमुख ग्लेशियर तीन और ग्लेशियरों से घिरा है। इसके अलावा भी इस ग्लेशियर के बारे में बहुत सारी बातें सुनने को मिल रही हैं, जिनके बारे में हम आपको विस्तार से बता रहे हैं। इसके दाईं ओर कीर्ति और बाईं ओर चतुरंगी और रक्तवर्ण ग्लेशियर हैं। संस्थान के वैज्ञानिक ने बताया कि ग्लेशियर की जो ताजा तस्वीरें और वीडियो उन्हें मिले हैं, उनसे पता चलता है कि गोमुख ग्लेशियर के दाईं ओर का हिस्सा आगे से टूटकर गिरा पड़ा है। इसके कारण गाय के मुख यानी गोमुख की आकृति वाला हिस्सा दब गया है। इस हिस्से में दल वर्ष 2014 में ये महत्वपूर्ण बदलाव देख रहा था। आपको बता दें कि दल हर साल मई से नवंबर तक ग्लेशियर की रिसर्च करता आ रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार हालांकि ग्लेशियरों में परिवर्तन एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन ये बदलाव महत्वपूर्ण है।


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