उत्तराखंड: 30 सालों में 36.75 प्रतिशत बर्फ घटी, खतरे के निशान पर ग्लेशियर.. स्नो लाइन भी सरकी
उत्तराखंड के ग्लेशियर गंभीर जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और बढ़ती गर्मी के प्रभाव से स्नो लाइन भी ऊंचाई की ओर खिसक रही है।
Sep 28 2024 6:12PM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क
ग्लेशियर में बर्फ की मोटी परत निरंतर कम होती जा रही है और इसके स्थान पर प्रभावित होने वाली पतली परतों में अचानक वृद्धि देखी जा रही है। यह चौंकाने वाली जानकारी मिजोरम विश्वविद्यालय (आइजोल) के हालिया शोध में उजागर हुई है।
Decrease in Snow Quantity in Uttarakhand Over the Past 30 Years
उत्तराखंड और सेंट्रल हिमालय के ग्लेशियर गंभीर जलवायु परिवर्तन के खतरों का सामना कर रहे हैं। बर्फ की मोटी चादर लगातार कम हो रही है, जबकि इसके स्थान पर तेजी से प्रभावित होने वाली पतली चादर में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है। जलवायु परिवर्तन और बढ़ती गर्मी के प्रभाव के चलते स्नो लाइन भी ऊँचाई की ओर खिसक रही है। यह चौंकाने वाली जानकारी मिजोरम विश्वविद्यालय (आइजोल) के हालिया शोध में सामने आई है। इस अध्ययन को प्रतिष्ठित पत्रिका अर्थ सिस्टम्स एंड एनवायरमेंट, स्प्रिंगर नेचर में प्रकाशित किया गया है, जिसमें यूनाइटेड स्टेट्स जियोलाजिकल सर्वे (USGS) के आंकड़ों का उपयोग किया गया है।
उत्तराखंड के ग्लेशियरों में बर्फ की मात्रा में 30 वर्षों में आई कमी
मिजोरम यूनिवर्सिटी के सीनियर प्रोफेसर विश्वंभर प्रसाद सती और शोधकर्ता सुरजीत बनर्जी के अनुसार उत्तराखंड के ग्लेशियरों में बर्फ की स्थिति का आकलन 1991 से 2021 के बीच के आंकड़ों के आधार पर किया गया। 30 वर्षों की अवधि में बर्फ की मोटी परत (ग्लेशियर का मुख्य भाग) 10,768 घन किलोमीटर से घटकर अब केवल 3,258.6 घन किलोमीटर रह गई है। जबकि पतली चादर में बर्फ की मात्रा 3,798 घन किलोमीटर से बढ़कर 6,863.56 घन किलोमीटर हो गई है। इसका सीधा मतलब है कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के चलते अधिक समय तक टिकने वाली मोटी बर्फ की परत लगातार कम हो रही है।
मानव हस्तक्षेप और गर्मी के कारण स्नो लाइन में 700 मीटर की पीछे खिसका
उच्च हिमालय के क्षेत्रों में मानव हस्तक्षेप और बढ़ते गर्म दिनों के कारण स्नो लाइन 1991 से 2021 के बीच 700 मीटर ऊपर खिसक गई है। पहले जो बर्फ का दागरा निचले क्षेत्रों में सालभर नजर आता था, वह अब खत्म होता जा रहा है। सीनियर प्रोफेसर विश्वंभर सती के अनुसार, वर्ष 1991 में उत्तराखंड में बर्फ की मात्रा 13,281 घन किलोमीटर थी, जो अब 2021 में घटकर 8,400 घन किलोमीटर रह गई है। 30 वर्षों में 4,881 घन किलोमीटर बर्फ का कम होना अत्यंत चिंताजनक है।
ग्लेशियरों में बर्फ की चादर में तीव्र कमी और उसके प्रभाव
गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान, ऊपरी भागीरथी जल्याही क्षेत्र और टॉस नदी बेसिन में बर्फ की चादर के नुकसान और विखंडन की स्थिति अधिक तीव्रता से हो रही है। इन क्षेत्रों में बर्फ के बनने और पिघलने की गति अल्प समय में तेज हो गई है। केदारनाथ के ऊपरी क्षेत्रों में भी बर्फ की मोटी चादर तेजी से कम होती जा रही है। ग्लेशियरों में आ रहे बदलाव के कारण कृषि के लिए जल उपलब्धता में कमी आ सकती है, जिससे अचानक बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं में तीव्रता आएगी। इसके अलावा नैनीताल क्षेत्र में भी बर्फ की आवृति में कमी देखी गई है।