उत्तराखंड: इन 2 गांव में नहीं मनाते दशहरा, दोनों के बीच होता है गागली युद्ध.. जानिए खास परंपरा
जहाँ आज पूरे देश में दशहरे का पर्व मनाया जा रहा हैं वहीं उत्तराखंड के दो गाँव में यह पर्व नहीं मनाते, इसके पीछे कुछ पौराणिक मान्यताएं हैं। तो चलिए जानते हैं.....
Oct 12 2024 11:29AM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क
आज दशहरे के दिन ग्राम उद्पाल्टा में गागली युद्ध के तहत पाइंता पर्व मनाया जाता है। यह पर्व दो बहनों की कुएं में गिरकर मौत और दो गांवों के बीच युद्ध की किंवदंती पर आधारित है। पर्व के लिए गांव में बाहर से लोग भी बड़ी संख्या में शमिल होते हैं।
Dussehra is Not Celebrated in These Two Villages of Uttarakhand
दशहरे यानी आज के दिन जब देशभर में रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाएंगे, जौनसार बावर के कुरोली और उद्पाल्टा गांवों में सदियों पुरानी परंपरा के तहत गागली युद्ध का आयोजन होगा। यह आयोजन रानी और मुन्नी नामक दो बहनों की दुखद कहानी पर आधारित है, जो पानी भरने के लिए क्याणी नामक स्थान पर गई थीं। पैर फिसलने से रानी की कुएं में गिरकर मौत हो गई और मुन्नी ने डर के कारण उसी कुएं में कूदकर जान दे दी। इस घटना के बाद माना जाता है कि गांव वालों पर श्राप लग गया था, जिससे मुक्ति पाने के लिए हर वर्ष गागली के तनों से दोनों गांवों के बीच यह प्रतीकात्मक युद्ध होता है।
पाइंता पर्व की पारंपरिक तैयारियों में जुटे ग्रामीण
पाइंता पर्व की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और दोनों गांवों के लोगों ने रानी और मुन्नी के प्रतीक के रूप में गागली के तनों पर फूल सजाकर अपने घरों में रखा है। इन प्रतीकों की दो दिनों तक पूजा के बाद दशहरे के दिन इन्हें उसी कुएं में विसर्जित किया जाएगा। इसके साथ ही गांव के पंचायती आंगन को सजाया गया है और अतिथियों के स्वागत के लिए पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जा रहे हैं। जौनसार बावर क्षेत्र के अन्य गांवों के मंदिरों में भी शिलगूर और बिजट देवताओं की पालकियां दर्शन के लिए बाहर निकाली जाएंगी, जहां श्रद्धालु देव चिह्नों के दर्शन करेंगे। उत्तराखंड में इस तरह की अनेक किवंदतियां हैं, जो सदियों से चली आ रही परंपराओं और मान्यताओं को जीवित रखे हुए हैं।