उत्तराखंड: तिब्बत जीत कर लौटे माधोसिंह तब मनाई ईगास, पहली बार लगा था झूमैलो.. जानिये गौरवगाथा
वीर माधो सिंह भंडारी की सकुशल वापसी का समाचार न मिलने के कारण, महाराजा गढ़वाल महीपत शाहजी महाराज ने राज्यभर में दीवाली नहीं मनाने को कह दिया था। जानिये ये गौरवशाली लोक गाथा..
Nov 12 2024 6:16PM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क
सोहलवीं सदी में लगभग 1603 - 1627 ई० के दौरान गढ़वाल राज्य की राजधानी श्रीनगर में महाराजा महीपत शाह जी राज्यशासन की जिम्मेदारी सम्भाले हुए थे। उस अवधि में गढ़वाल राज्य के दो प्रमुख सेनानायक, क्रमशः परम पराक्रमी वीरयोद्धा, माधोसिंह भंडारी एवं महान पराक्रमी वीरयोद्धा लोदी रिखोला गढ़वाली सेना की कमान संभाल रहे थे।
History of Igas Bagwal and Jhumelo in Uttarakhand
जब वीरभड़ लोधी रिखोला, गढ़वाल राज्य की दक्षिण - पूर्वी सीमा पर भाबर एवं कालागढ़ क्षेत्र में बहादुरी के साथ आक्रमणकारियों से लोहा ले रहे थे, तो उत्तरी सीमा पर भोटन्त देश (तिब्बत) के आक्रमणकारी निरन्तर अशान्ति पैदा करने में कोई कोर - कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। यकायक भोटन्त देश के राजा शौका (शौकू) ने गढ़वाल राज्य पर आक्रमण करने की घोषणा कर दी। अतः महाराजा महीपत शाह जी महाराज ने राज्य के प्रमुख सेनापति वीरभड़ माधो सिंह भंडारी को गढ़वाली सेना के साथ भोटन्त देश तिब्बत की सीमा पर शौकू का आक्रमण रोकने की जिम्मेदारी सौंपी।
गढ़वाल के वीरभड़ सेनापति माधोसिंह भंडारी
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विकट पहाड़ी रास्ते, असंख्य नदी-नाले, घने जंगल, घाटियों, पहाड़ों पर उतरने-चढ़ते रास्तों, शीत कोहरे हिम और पाले से भरे हुए बुग्यालों एवं पर्वत चोटियों को पार करते हुए वीरभड़ माधो सिंह भंडारी अपने गढ़वाली योद्धाओं को साथ, महीने भर की लम्बी एवं थकाऊ यात्रा के बाद तिब्बत की सीमा पर पहुंचे। जनश्रुति है कि तिब्बती सेना के साथ सीमा पर लगभग छ: माह तक भयानक युद्ध चलता रहा और आखिरकार गढ़वाली सेनापति वीरभड़ माधो सिंह भंडारी के युद्ध कौशल एवं रणनीति के सम्मुख तिब्बती सेना को पीठ दिखाकर भागना पड़ा। वीरयोद्धा माधोसिंह भंडारी ने तिब्बती सेना को सीमा के अंदर तक खदेड़ने के पश्चात् भोटन्त प्रान्तपर विजय पताका फहरा दी। साथ ही गढ़वाल और तिब्बत की सीमा पर गढ़वाली वीरों के द्वारा पत्थरों की सीमा रेखा (मुण्डारा) का निर्माण भी किया गया। वह पाषाण रेखा आज भी तिब्बत और गढ़वाल की सीमा को दो भागों में विभाजित कर रही है।
नहीं लौटे सेनापति तो नहीं मनी दीपावली
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तिब्बत देश की सीमा विजय पताका पहराने के बाद जब माधो सिंह भंडारी गढ़वाल राज्य की राजधानी श्रीनगर की ओर बढ़ रहे थे, तो लंबी कठिन लड़ाई लड़ने और सीमा प्रांत से श्रीनगर तक पहुंचने मैं लंबा समय लगना स्वाभाविक ही था।अतः जनश्रुति है कि वीर माधो सिंह भंडारी की सकुशल वापसी का समाचार न मिलने के कारण, महाराजा गढ़वाल महीपत शाहजी महाराज ने राज्यभर में दीवाली नहीं मनाने का फरमान जारी कर दिया।
कार्तिक मास की एकादशी (इगास) के दिन घर पहुंचे माधोसिंह
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अतः कार्तिक मास की एकादशी (इगास) के दिन जब गढ़वाल राज्य के वीर सेनापति माधोसिंह भंडारी के पहुंचने की सूचना प्राप्त हुई, तब महाराजा महीपत शाह ने संपूर्ण गढ़वाल प्रांत में प्रकाश पर्व मना कर वीर सेनापति सहित जीवित बचकर आए सैनिकों के सम्मान में खुशियां मनाने एवं नाचने गाने का ऐलान किया। संपूर्ण गढ़वाल वासियों ने अपने वीर सेनापति का स्वागत दौळी के छुल्ले चीड़ अथवा अन्य जलनशील पेड़ों की लड़कियां रस्सी से बांध कर जलाने के पश्चात् झूम-झूम नाचते हुए किया। महाराजा महीपत शाह जी महाराज ने यह भी ऐलान किया कि आज से दिवाली के 11 वे दिन प्रतिवर्ष वीरभड़ सेनापति माधोसिंह भंडारी की वीरता के लिए समर्पित इगास बग्बाळ मनाई जाएगी।
गाये गए गीत बन गए झूमैलो
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इस प्रकार गढ़वाल प्रांत में वीर सेनापति माधोसिंह भंडारी की वीरता की निमित्त मनाया जाने वाला लोक_उत्सव आज भी इगास बग्बाळ के रूप में धूम - धाम से मनाया जाता है। बाद के दिनों में वीरवार माधो सिंह भंडारी जी की खुद में गया गया गीत संपूर्ण गढ़वाल वासियों ने भैलो जलाने के बाद नृत्य के रूप में गाने का साधन बनाया। इस प्रकार झूम कर (झूमते हुए) लौ (प्रकाश जलाकर) जो गीत गाये गये, उन्हें ही कालांतर में झूम+ लौ= झूमलो (झूमैलो) के नाम से जाना गया।
यह लेख वरिष्ठ रंगकर्मी एवं लोक-साहित्यकार आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल (सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य) अध्यक्ष/निर्देशक, मण्डाण ग्रुप केदारघाटी द्वारा प्रेषित किया गया है।