गढ़वाल: किताब कौथिग के लिए अकेले लड़ रहे गढ़रत्न नेगी, छात्रसंघ नेताओं की धमकी.. प्रशासन निष्क्रिय
वर्तमान परिदृश्य में एक तरफ युवा आधुनिकता की ओर आंख बंद करके उतरने में लगे हैं, दूसरी ओर शिक्षा के वातावरण को जिंदा रखने को लेकर गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी जी अकेले जूझ रहे हैं, नेगी दा ने युवाओं से शिक्षा के वातावरण को बचाने के लिए भावुक अपील की है।
Feb 13 2025 7:00PM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क
उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल में होने वाला किताब कैथिग इस साल नहीं होगा, इसे लेकर उत्तराखंड के लीजेंड लोक कलाकार गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी क्षुब्द हैं, और हो भी क्यों ना। आधुनिकता की अंधी दौड़ में युवा सोशल मीडिया पर क्या परोस रहे हैं, ये पाठक देख ही रहे होंगे, वहीं दूसरी तरफ संस्कृति को बचाए रखने वाली और शिक्षा की रीढ़ मानी जाने वाली किताबें हम सबसे दूर होती जा रही हैं। संस्कृति मर रही है और शासन-प्रशासन मौन है, तमाशा देख रहा है।
Garhratn Negi fighting alone for Shrinagar Garhwal Kitab Kauthig
गढ़वाल में किताबों को लेकर और शिक्षा के वातावरण को जिंदा रखने की कोशिश में "किताब कौथिग" आयोजित किया जाता है, लेकिन इस वर्ष विचित्र रूप से इसे होने नहीं दिया जा रहा। गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी जी इस संबंध में पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर अपनी पीड़ा भी जाहिर कर रहे हैं। सवाल है कि क्या सरकार को उत्तराखंड के सबसे बड़े लोक कलाकार की बात सुनाई तक नहीं दे रही? उनकी पीढ़ा नहीं महसूस हो रही? नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर सब कुछ लिख दिया है, लेकिन शिक्षा के वातावरण को बचाए रखने के संघर्ष से प्रशासन के कानों में कोई जूं नहीं रेंग रही। अलमस्त प्रशासन सुस्त सोया पड़ा है।
सरकार को नहीं दिख रही "गढ़रत्न" की पीढ़ा
नेगी जी ने लिखा है.. "दगड़ियों, श्रीनगर में किताब कौथिग निरस्त करवाने में भले ही कुछ लोग कामयाब हो गये हों किन्तु पुस्तकों का महत्व समझने वाले श्रीनगर के बुद्धिजीवी, बाल साहित्य, व लोकसाहित्य प्रेमी बहुत निराश हुये हैं। इस कार्यक्रम के मुख्य आयोजक हेम पन्त ने बताया कि गढ़वाल विश्वविद्यालय (केन्द्रीय), रामलीला मैदान, गर्ल्स इन्टर कालेज ने लिखित अनुमति देने के बाद किसी के दबाव में आकर मौखिक रूप से मना कर दिया। हेम ने बताया कि उन्होंने छात्र संघ के श्री जसवन्त राणा, अमन काला, आशु पन्त, रुपेश नेगी से भी अनुरोध किया कि यह कार्यक्रम छात्र हित में है इसे होने दें किन्तु वे नहीं माने और धमकियां देने लगे। SDM श्रीनगर ने बताया कि न तो उन्होंने अनुमति दी न निरस्त की। अब श्रीनगर के युवाओं को ही तय करना है कि वे शिक्षा के केन्द्र श्रीनगर में कैसा वातावरण बनाना/देखना चाहते हैं।
हैंसले स्य हैंसी तेरी सदानि निरैणी
आंख्यूंमा हमारी भि सदानि निरैणी अंसाधारी,
सदानि निरैण रे झ्यूंतु तेरी जमादारी।
प्रशासन के मुंह पर जोरदार तमाचा
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तीनों शैक्षणिक संस्थानों की परमिशन के बाद भी शिक्षा के मेले - "किताब कौथिग" का न हो पाना, अराजक समाज की निशानी है। राज्य समीक्षा की उत्तराखंड सरकार और श्रीनगर गढ़वाल के प्रशासन से यह अपील है कि "किताब कौथिग" जैसे आयोजन को निरस्त करवाने वाले लोगों को कामयाब न होने दें। वैसे भी उत्तराखंड की संस्कृति डीजे वाले गीतों तक ही सिमट के रह गई है। संस्कृति और विरासत के बारे में लंबे लच्छेदार भाषण देने से संस्कृति नहीं बचेगी। इसके लिए जमीन पर काम करना होगा। "किताब कौथिग" जैसे आयोजन अगर छात्रों की नेतागिरी में बंद होते हैं तो यह सरकार और प्रशासन के मुंह पर जोरदार तमाचा है।