उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री के ही क्षेत्र में नहीं हो सका "किताब कौथिग", RSS और ABVP नेताओं ने रुकवाया
यूनिवर्सिटी के छात्र संगठनों ने VC मनमोहन रौथाण के पास आपत्ति जताई इसके बाद मेला रामलीला मैदान में करने का निर्णय लिया गया, इसके बाद भी छात्र संगठनों ने किताब कौथिग का कार्यक्रम रद्द करा दिया।
Feb 15 2025 6:52PM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क
यह किस दिशा में जा रहे हैं युवा ? देवभूमि उत्तराखंड में शिक्षा का बहिष्कार शुरू हो चुका है। 12 पुस्तक मेलों के संचालन होने के बाद आखिर श्रीनगर गढ़वाल की एचएनबी यूनिवर्सिटी के छात्रों द्वारा 13वां पुस्तक मेला बंद कर दिया गया।
RSS and ABVP leaders stopped Kitab Kauthig in HNB Srinagar Garhwal
श्रीनगर गढ़वाल के युवा शायद नहीं जानते, उन्होंने एक काला इतिहास लिख लिया है। यह कार्यक्रम रद्द होना गढ़वाल में शिक्षा के केंद्र श्रीनगर गढ़वाल के छात्र युवाओं की मानसिकता पर भी बड़ा प्रश्न खड़ा करता है.. आखिर किताबें किसी का क्या नुक्सान कर सकती हैं ?
छात्रों के हाथों की कटपुतली बने VC
HNB गढ़वाल विश्वविद्यालय के VC इस समय प्रो० मनमोहन रौथाण हैं, जो शायद छात्रों के हाथों की कटपुतली बन चुके हैं.. गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी की लाख कोशिशों के बाद भी 15 फरवरी और 16 फरवरी 2025 को होने वाला किताब कौथिग आखिर रद्द कर दिया गया। दरअसल, यूनिवर्सिटी के कुछ छात्र संगठनों ने इसे लेकर VC के पास आपत्ति जताई थी, जिसके बाद पहले इसे रामलीला मैदान में करने का निर्णय लिया गया था। रामलीला मैदान में परमिशन मिलने के बाद फिर छात्र संगठनों ने कार्यक्रम रद्द करा दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक RSS और ABVP के छात्र नेताओं ने यह कार्यक्रम रद्द करवाया है।
13वां कौथिग श्रीनगर गढ़वाल के छात्रों ने रुकवाया
कार्यक्रम का को-ऑर्गेनाइजेशन डिपार्टमेंट ऑफ़ लाइब्रेरी साइंस था। "किताब कौथिग" के आयोजक हेम पंत ने कहा कि हम 12 पुस्तक मेलों का सफल आयोजन कर चुके हैं यह 13वां पुस्तक मेला था। पुस्तक मेला पहले जनवरी में आयोजित किया जाना था। चुनाव की वजह से इस पोस्टपोंड कर 15 और 16 फरवरी को करना तय किया गया। लेकिन यूनिवर्सिटी के कुछ छात्र संगठनों ने इसको लेकर VC साहब के पास आपत्ति जताई। इसके बाद संस्था द्वारा पुस्तक मेला रामलीला मैदान श्रीनगर में करने का निर्णय लिया गया, 15- 16 फरवरी की रामलीला मैदान में परमिशन भी मिल गई थी, लेकिन यहां भी एक संगठन द्वारा यह कार्यक्रम नहीं करने दिया गया।
नेगी दा ने किये भरसक प्रयास
प्रसिद्ध लोककलाकार नरेंद्र सिंह नेगी जी ने इस कार्यक्रम को करने की भरसक कोशिश की, लेकिन उत्तराखंड सरकार और प्रशासन या यूनिवर्सिटी की ओर से किसी भी तरह का समर्थन नहीं मिल सका। आखिरकार शिक्षा और संस्कृति को समर्पित एक कार्यक्रम गढ़वाल ने खो दिया। एक छोटा सा सवाल ये भी है कि अगर नाच गाने का प्रोग्राम होता तो तब भी क्या एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के छात्रों का इस पर यही रुख रहता ?