image: Garhwali soldiers returning home after 103 years

103 साल बाद अपने पहाड़ लौट रहे हैं 39 गढ़वाल राइफल्स के रणबांकुरे... सलामी दीजिये !

Nov 13 2017 5:49PM, Writer:शैल

आखिरकार 16 नवंबर को फ्रांस में मिले गढ़वाली सैनिकों के अवशेष भारत लाए जाएंगे । आखिरकार 103 वर्षों के बाद इन दो गढ़वालियों को वतन की मिट्टी नसीब होगी । परन्तु इस बार पहाड़ की मिट्टी को खुद पर गर्व होगा कि उसने ऐसे शूरवीर पैदा किये हैं जो अपनी वीरता के किस्सों से पूरी दुनिया में अपनी मातृभूमि का नाम रोशन करते रहे हैं । गढ़वाल राइफल के शौर्य और साहस के किस्से तो आपने सुने ही होंगे। इस खबर की तस्दीक कर लीजिए, आपको गर्व होगा कि आप भी उस गढ़भूमि से हैं, जहां ऐसे वीर सपूत पैदा हुआ हैं । फ्रांस के रिचबर्ग नामक स्थान पर खुदाई के दौरान दो गढ़वाली सैनिकों के अवशेष मिले थे । भारत सरकार को इस बारे में सूचना दी गई थी और सैनिकों की शिनाख्त के लिए बुलावा भेजा गया था । खबरों के मुताबिक दोनों अवशेषों के कंधों पर 39 टाइटल शोल्डर थे जो इस बात का पुख्ता सबूत है कि दोनों ही अवशेष 39 गढ़वाल राइफल्स के हैं । इसी आधार पर फ्रांस की सरकार ने भारत की सरकार को इस दोनों अवशेषों की शिनाख्त के लिए बुलावा भेजा था । ये खबर मिलते ही लैंसडौन सैन्य अधिकारियों का एक दल फ्रांस रवाना हो गया है। राज्य समीक्षा ने यह खबर प्रकाशित करते हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी थी (क्लिक करें - फ्रांस में गढ़वाल राइफल के दो जवानों के अवशेष मिले, वीर गढ़वालियों को दुनिया को सलाम)

नवीनतम खबर यह है कि सूचना पर फ्रांस सरकार द्वारा भारत को आमंत्रण दिए जाने के बाद गढ़वाल राइफल्स के सैनिकों की टीम फ्रांस पहुंच गई है। सूत्रों की मानें तो लैंसडौन से सेना के दो अधिकारियों के साथ सैन्य अधिकारियों की टीम दिल्ली में आवश्यक कागजी कार्रवाई को सम्पन्न करने के बाद के फ्रांस के लिए रवाना हुई थी। दोनों जवानों के अवशेषों की जांच के बाद सैन्य अधिकारियों की टीम अपने रणबांकुरों को पहले रिचबर्ग में ही श्रद्धांजलि देगी। साथ ही उन्होंने सैन्य प्रतिनिधिमंडल के रणबांकुरों के अवशेष लेकर फ्रांस से 16 नवंबर तक स्वदेश वापसी की संभावना जताई है। फ्रांस सरकार के प्रतिनिधि के अनुसार खुदाई के दौरान एक जर्मन, एक ब्रिटिश, और दो गढ़वाली सैनिकों के अवशेष मिले हैं। गढ़वाली सैनिकों के सोल्डर पर 39 लिखा है, जिससे यह समझा जा रहा है कि दोनों सैनिकों का 39 गढ़वाल राइफल्स से संबध रहा है । आखिरकार 103 वर्षों के बाद दोनों गढ़वाली रणबांकुरे अपनी मातृभूमि वापस आयेंगे । राज्य समीक्षा ऐसे वीरों को सलाम करता है और सलाम करता है इस पहाड़ की मिट्टी को जिसने ऐसे योद्धाओं को जन्म दिया है ।

यहाँ याद रहे कि प्रथम महायुद्ध में गढ़वाल की सेना ने अपनी अलग ही अमिट छाप छोड़ी थी । कहा जाता है कि जर्मन सैनिकों के बीच गढ़वाली सैनिकों की टोली तूफानी टुकड़ी के नाम से प्रसिद्ध थी। गढ़वाली ब्रिगेड 2/39 बटालियन 21 सितंबर 1914 को करांची से प्रस्थान कर 13 अक्तूबर को फ्रांस के बंदरगाह मार्सेल्स पहुंची और मोर्चे पर डट गयी थी । प्रथम विश्वयुद्ध में 23 नवंबर 1914 को जर्मन सेना के बमों की परवाह न करते हुए अपनी जान हथेली पर रखकर गढ़वाली सैनिकों ने 300 गज लंबी खाई पर अकेले ही कब्जा कर लिया था । इस युद्ध में अद्भुत वीरता के लिए गढ़वाल रायफल्स के नायक दरबान सिंह को ब्रिटिश सरकार द्वारा सर्वोच्च सम्मान विक्टोरिया क्रास से नवाजा गया था । 10 मार्च 1915 के न्यू चैपल युद्ध में गढ़वाल राइफल्स के ही राइफलमैन गबर सिंह ने निर्णायक भूमिका निभाई थी । उन्होंने अदम्य साहस का परिचय देते हुए वीरगति प्राप्त की और उन्हें मरणोपरांत विक्टोरिया क्रास से सम्मानित किया गया था । इस युद्ध में विशिष्ट वीरता के लिए छह गढ़वाली सैनिकों को मिलिट्री क्रास से अलंकृत किया गया था ।


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