image: Kumaun university shivling study

देवभूमि में बदल रही है शिवलिंग की आकृति, भू-वैज्ञानिकों ने दी भंयकर सूखे की वॉर्निंग !

Nov 27 2017 2:48PM, Writer:कपिल

उत्तराखंड समेत पूरे उत्तर भारत में जबरदस्त सूखा पड़ सकता है। ये चेतावनी एक भू-वैज्ञानिक के शोध के बाद दी गई है। ये बात भी सच है कि बीचे 330 सालों में उत्तर भारत को 26 बार सूखे का सामना करना पड़ा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 2020 और 2022 में उत्तर भारत के कई इलाकों में भयंकर सूखे के हालात पैदा हो सकते हैं। उत्तराखंड के सुदूर पहाड़ों की गुफाओं में बनी शिवलिंगनुमा आकृतियां पर शोध का बाद ये निष्कर्ष निकाला गया है। नवभारत टाइम्स के एक लेख में भी इस खबर को प्रमुखता से जगह दी गई है। कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के शोधकर्ता अनूप कुमार सिंह ने ये शोध किया है। आपको बता दें कि इस शोध को हाल ही में राज्यपाल अवार्ड से भी नवाजा गया है। अनूप सिंह ने रानीखेत के करीब की ऐसी गुफाओं का आंकलन किया है।

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उन्होंने भूगर्भीय नजरिए से ये शोध किया है। हालांकि खबर तो ये भी है कि पाताल भुवनेश्वर में ये शोध किया गया है। खैर जो भी हो अनूप सिंह को कुछ गुफाओं में शिवलिंगनुमा आकृतियां मिलीं। ये तमाम शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बने थे। भूविज्ञान की भाषा में इसे स्टैगलाइट कहा जाता है। अनूप सिंह का कहना है कि शिवलिंगनुमा इन आकृतियों में सैकड़ों वर्षों तक मौसम में हुए बदलावों का लेखा जोखा सिमटा है। शोध की मदद से इन शिवलिंगनुमा आकृतियों से बीते सैंकड़ों सालों में हुए जलवायु परिवर्तन का हिसाब किताब मिल रहा है। इसके साथ ही भविष्य के मौसम का पूर्वानुमान भी लगाया जा रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि शिवलिंगों की स्टडी से मिली जानकारी मौसम का पूरा चक्र समझा रही है। इनका अध्ययन यूरेनियम थोरियम डेटिंग और ऑक्सिजन-कार्बन आइसोटोप्स के आधार पर किया गया।

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उनका कहना है कि इन शिवलिंगों के अध्ययन से दक्षिणी पश्चिमी मानसून और पश्चिमी विक्षोभ की सटीक जानकारी मिल सकती है। आपको बता दें कि पश्चिमी विक्षोभ ही उत्तर भारत में गेंहू की फसल को प्रभावित करता है। बताया जा रहा है कि ये ये शिवलिंगनुमा आकृतियां चूना पत्थर से बनी हुई हैं। ये आकृतियां हर साल होने वाली बारिश, अतिवृष्टि और हिमपात और सूखा जैसी हर जानकारी को अपने अंदर समेटे हुई हैं। इस शोध में बताया गया है कि कई सालों पहले इस इलाके में एक अंतराल पर सूखा भी पड़ता रहा। इन शिवलिंगों की ऊंचाई हर साल पानी बरसने के साथ घटती और बढ़ती रहती है। इसके साथ ही हर मौसम के साथ इन शिवलिंगों में एक रिंग का निर्माण भी हो रहा है। अनूप सिंह ने अपनी स्टडी में शिवलिगों पर बने इन्हीं रिंग्स का गहन शोध किया।


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