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ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन देश के लिए मिसाल बनेगी, हाईटेक तरीके से काम शुरू

Jan 3 2018 11:55AM, Writer:आदिशा

उत्तराखंड में एक बड़ा काम हो रहा है और माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में देश के लिए ये रेल लाइन मिसाल बनेगी। इसकी कुछ खास बातें हैं, इस बारे में हम आपको बता रहे हैं। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के लिए पहाड़ों को काटकर कई सुरंगें तैयार की जाएंगी। इस मलबे के लिए 31 डंपिंग साइट्स तैयार होनी हैं। इन डंपिंग साइट में पौधारोपण के जरिए 31 नए जंगल तैयार किए जाएंगे। 125 किलोमीटर की लम्बाई में तैयार होने वाली इस नई रेलवे लाइन में 16,216 करोड़ रुपये की लागत आएगी। रेल विकास निगम, आईआईटी रुड़की और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसके लिए खास प्लान तैयार किया है। इस रेलवे लाइन के लिए 563 हेक्टेयर वन भूमि हस्तांतरित होगी। हस्तांतरण के लिए केंद्रीय वन मंत्रालय ने सहमति दे दी है।

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ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की पहली प्राथमिकता है। जून-जुलाई से परियोजना के लिए सुरंगों का निमार्ण शुरू कर दिया जाएगा। इसके ग्राउंड वर्क और लोकेशन सर्वे में सैटेलाइट इमेजरी के साथ डिजिटल रेजोल्यूशन टेक्नॉलोजी का इस्तेमाल होगा। पर्यावरणीय और पारिस्थितिकी संवेदनशीलता का ध्यान रखते हुए मॉडर्न टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जाएगा। इस रेलवे लाइन में 2835 मीटर लम्बाई में 16 पुलों का निर्माण होगा। इस ट्रैक पर ट्रेन की रफ्तार 100 किलोमीटर प्रति घंटा होगी। पूरे रास्ते में 12 रेलवे स्टेशन होंगे। इसके अलावा ऋषिकेश से कर्णप्रयाग के बीच 16 सुरंगों का निर्माण होगा। खास बात ये है कि इस सफर में सबसे लंबी सुरंग 18 किलोमीटर की होगी। कर्णप्रयाग से ये सफर शुरू होगा।

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कर्णप्रयाग से सफर शुरू होगा तो रास्ते में गौचर, गोलतीर, तिलणी, धारी देवी, रुद्रप्रयाग, नैथाणा (श्रीनगर), मलेथा, रानी दयूली हॉट, सोड़, ब्यासी और शिवपुरी होते हुए ऋषिकेष तक आएगी। सबसे लंबी सुरंग18 किलोमीटर की होगी, जो कि सोड़ और ज्ञानसू के बीच होगी। सबसे छोटी सुरंग 200 मीटर लंबी होगी। इस रेल लाइन के पहले फेज में सिंगल रेल लाइन बनना तय है। हर स्टेशन पर एक या दो लूप लाइन होंगी। इसके साथ ही ये ये रेल रूट एक और रिकॉर्ड तैयार करेगा। प्रस्तावित ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन में देश की सबसे लंबी सुरंग बनने जा रही है। अब तक भारतीय रेलवे जम्मू-कश्मीर में ही सबसे लंबी रेल सुरंग बना पाया है, जिसकी लंबाई सवा ग्यारह किलोमीटर है। खैर अब देखना है कि कितनी जल्दी उत्तराखंड को ये तोहफा मिलता है।


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