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देवभूमि की संस्कृति और सभ्यता पर बड़ी रिसर्च, अमेरिकी प्रोफेसर ने बताई बड़ी बातें

Jan 19 2018 9:14AM, Writer:कपिल

उत्तराखंड की संस्कृति और सभ्यता का इतिहास आज का नहीं बल्कि युगों पुराना है। ये एक ऐसा इतिहास है, जिसे किताबों और रिसर्च में संडोए जाने की जरूरत है। इसी संस्कृति पर अमेरिका के ऐलोन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ब्राइन के. पेनिंग्टन शोध कर रहे हैं। इसके लिए वो बकायदा उत्तरकाशी पहुंचे हैं। उत्तरकाशी का माघ मेला जिसे बाड़ाहाट का थौलू भी कहते हैंं , वहां ये अमेरिकी प्रोफेसर पहुंचे हैं। वो सिर्फ मेले का हिस्सा बनने नहीं आए हैं, बल्कि इस पर एक किताब लिख रहे हैं। बाड़ाहाट का सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रहा है। इसकी कहानी जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। प्रोफेसर ब्राइन ने बाड़ाहाट के बारे में लंदन की एक लाइब्रेरी से तथ्य भी जुटाए हैं। बाड़ाहाट उत्तरकाशी का पुराना नाम है। बाड़ाहाट का मतलब है 'बड़ा बजार'।

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साल 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ था। इससे पहले तिब्बत के व्यापारी बाड़ाहाट में आकर मंडी लगाते थे। हालांकि युद्ध के बाद ऐसा बंद हो गया था। इन यादों को संजोए रखने के लिए आज के दौर में बाड़ाहाट का थोलू होता है। इससे पहले भी 2006 में प्रोफेसर ब्राइन अमेरिका से पहली बार उत्तरकाशी आए थे। उत्तरकाशी की पौराणिक पृष्ठभूमि से प्रोफेसर खासे प्रभावित हुए थे। तबसे वो लगातार बाड़ाहाट के मेले पर रिसर्च करते जा रहे हैं । प्रोफेसर ब्राइन कहते हैं कि साल 2006 से लेकर अब तक यहां काफी बदलाव आए हैं। उन्होंने बताया कि 2012 और 2013 में आई आपदा के कहर को वो खुद भी देख चुके हैं। उन्होंने कहा कि वो बाड़ाहाट की संस्कृति पर एक किताब लिख रहे हैं। पुस्तक की प्रामाणिकता बरकरार रहे, इसके लिए उन्होंने लंदन की लाइब्रेरी में कई इतिहासकारों की पुस्तकें पढ़ीं।

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उनका कहना है कि उन्होंने उत्तरकाशी में कई बुजुर्गों से भी इस बारे में बात की। उत्तराखंड की परंपराओं ने प्रोफेसर ब्राइन को देवभूमि की तरफ खींचा। उनका कहना है कि वो उत्तराखंड की समृद्ध परंपराओं से पूरी दुनिया को परिचित कराएं। प्रोफेसर ब्राइन शानदार हिंदी बोलते हैं, जबरदस्त गढ़वाली बोलते हैं। इस बार वो 23 जनवरी तक उत्तरकाशी में रहेंगे। इसे पहले प्रोफेसर ब्राइन जनवरी 2015 में यहां आए थे। इस दौरान उन्होंने गढ़वाली नाटक जीतू बगड़वाल की प्रस्तुति देखी थी। इस नाटक को देखकर वो प्रभावित हुए थे। श्रीलंका में विश्वस्तरीय धर्म-संस्कृति सम्मेलन में उन्होंने जीतू बगड्वाल के बारे में बताया था। कुल मिलाकर कहें तो एक अमेरिकी प्रोफेसर उत्तराखंड में आकर उत्तराखंड की सभ्यता और संंस्कृति पर बड़ी रिसर्च़ कर रहे हैं।


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