उत्तराखंड की संस्कृति और पंरपरा से जुड़ा ‘पंय्या’ वृक्ष, इसके फायदे भी बेमिसाल हैं
Apr 12 2018 2:35PM, Writer:कपिल
लय्या-पय्यां ग्वीर्याळ फुलू न... होली धरती सजीं देखि ऐई, बसंत ऋतु मा ऐई। मेरा डांड्यू काठ्यूं का मुलुक ऐलू, बसंत ऋतु मां ऐई। सालों पहले गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी ने भी पंय्या वृक्ष की खूबसूरती का बखान किया था। उत्तराखंड में पंय्या के पेड का सीधा संबंध सांस्कृतिक रीति रीवाजों से भी है। गांव में होने वाली शादी मे प्रवेश द्वार पर पंय्या की शाखाऐं लगाई जाती हैं। खास बात ये भी है कि शादी का मंडप भी पंय्या की शाखाओं और पत्तियों के बिना अधूरा माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से पंय्या का बडा महत्व है। पूजा के लिऐ इस्तेाल होने वाली इसकी पत्तियां पवित्र मानी जाती हैं। उत्तराखंड में घर के द्वार, गृह प्रवेश या हवन के दौरान इसका इस्तेमाल बंदनवार के रूप में होता है। हालांकि एक बुरी खबर ये भी है कि इस वृक्ष का दोहन बड़ी संख्या में हो रहा है। अब जरा इसके बेमिसाल फायदे भी जानिए।
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पंय्या के पेड की छाल का इस्तेमाल दवा बनाने के लिए किया जाता है। रंग बनाने के लिए भी इसकी छाल का इस्तेमाल होता है। दवाइयों के लिए भी इस पेड़ का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है। पंय्या की लकड़ी के चंदन के समान पवित्र माना जाता है। हवन मे पंय्या की लकडी का इस्तेमाल पवित्र माना जाता है। ये पेड एक लंबे अंतराल के बाद पत्तियां छोड़ता है। पत्तियों का इस्तेमाल गाय बकरियों के विछौने के रूप में किया जाता है। आगे चलकर ये ही सूखे पत्ते उर्वरा और खाद का काम करती हैं। पंय्या का वृक्ष लम्बी उम्र वाला होता है। इसकी हरी-भरी शाखाएं बेहद ही खूबसूरत होती हैं। इस पौधे का वैज्ञानिक नाम प्रुनस सेरासोइडिस है। हिंदी में इस वृक्ष को पद्म या पदमख कहा जाता है। ये वृक्ष हिमालयी क्षेत्रों में उगता है।
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पहाड़ों में देववृक्ष के नाम से जाना जाने वाले इस वृक्ष को बचाने के लिए मुहिम तेज हो रही है। अच्छी बात ये भी है कि इसे बचाने के लिए टिहरी विधायक धन सिंह नेगी ने वन विभाग से साथ मिलकर काम करना शुरू किया है। हाल ही में बसंतोत्सव के मौके पर विधायक की मौजूदगी में 50 से ज्यादा पंय्या के पौधे लगाये गये। जाहिर सी बात है कि हमें अपने स्वार्थ को त्यागकर पंय्या को बचाने की कोशिश करनी होगी। इस तरह से ही आने वाली पीढ़ी इस वृक्ष का फायदा उठा सके। ईटीवी द्वारा तैयार किया गया ये वीडियो देखिए