ऐसी बेमिसाल है उत्तराखंड की संस्कृति... नये अनाज का भोग लगाकर कैलाश चले भोले बाबा
May 19 2018 12:03PM, Writer:ईशान
देवभूमि उत्तराखण्ड के तीर्थो की महिमा का गुणगान शब्दों में नहीं किया जा सकता है। आपको इस सांस्कृतिक परंपरा को समझना होगा, इसे महसूस करना होगा। उत्तराखण्ड के कई तीर्थ धार्मिक मान्यताओं के साथ सौन्दर्य से भरपूर है। इन्हीं में से एक हैं भगवान् मदमहेश्वर... 21 मई को उत्तराखंड के पंचकेदारों में द्वितीय केदार भगवान् मद्महेश्वर के कपाट श्रधालुओं के लिए खुल जाएंगे। अप्रैल में बैसाखी के मौके पर मंदिर के कपाटोद्घाटन का शुभ मुहूर्त निकाला गया था। 18 मई को भगवान मद्महेश्वर की डोली गर्भगृह से निकाल कर पूजा-अर्चना के बाद 19 मई को ऊखीमठ से मद्महेश्वर के लिए रवाना होना बैसाखी पर ही तय किया गया था। मद्महेश्वर भगवान समुद्र तल से 3490 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होंगे। इन्हें द्वितीय केदार माना गया है। यह ऊखीमठ से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां महिषरूपधारी भगवान शिव की नाभि लिंग रूप में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने अपनी मधुचंद्र रात्रि यही पर मनाई थी। यहां के जल की कुछ बूंदे ही मोक्ष के लिए पर्याप्त मानी जाती है।
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शुक्रवार को भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह भोग मूर्ति को गर्भगृह से बाहर लाकर सभामण्डप में विराजमान किया गया। जबकि शनिवार सुबह 7 बजे भगवान की चलविग्रह उत्सव डोली ने मद्महेश्वर धाम के लिए प्रस्थान किया। मन्दिर से दो किमी दूर मंगोलीचारी तक रावल भीमाशंकर लिंग ने डोली की अगुवाई की। शुक्रवार को ओंकारेश्वर मन्दिर में पौराणिक रीति रिवाजों के अनुसार ऊखीमठ के ग्रामीणों द्वारा भगवान को नए अनाज से निर्मित भोग को चढ़ाया गया और परम्परा के अनुसार सुबह 6 बजे मुख्य पुजारी शिव शंकर लिंग द्वारा भगवान का महाभिषेक पूजन कर श्रृंगार किया गया जिसके बाद पूजन व दान की परंपरा को सम्पन्न किया गया। इसके बाद स्थानीय लोगों द्वारा मन्दिर परिसर में भगवान को नए गेहूं के आटे से निर्मित पूरी व मीठे पकोड़ों का भोग बनाया गया। जिसका भोग लगाकर प्रसाद के रुप मे भक्तों को भी बांटा गया। मद्महेश्वर डोली 19 मई ओंकारेश्वर मन्दिर से रात्रि विश्राम राकेश्वरी मन्दिर रांसी, 20 मई को राकेश्वरी मन्दिर रांसी से गोंडार और 21 मई को गोंडार से मद्महेश्वर धाम पंहुचेगी। इसी दिन प्रातः 11 बजकर तीस मिनट पर मन्दिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे।
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यह उत्तराखंड की ही संस्कृति है जहां भगवान् खुद अपने भक्तों के हाथ से उनके द्वारा उगाये गये अनाज का भोग खाकर अपने निवास स्थान जाते हैं। आज भगवान् मद्महेश्वर ने अपने शीतकालीन प्रवास उखीमठ से अपने ग्रीष्मकालीन स्थल की और प्रस्थान किया। सच मानिए बहुत ही भावुक पल होता है ये। कहा जाता है कि जो व्यक्ति मद्महेश्वर घाटी के पावन तीर्थो में आता है, वो प्रकृति की सुन्दरता का कायल हो जाता है। भगवान मद्महेश्वर के धाम से लगभग दो किलोमीटर की ऊँची चोटी पर भगवान बूढा़ मद्महेश्वर का धाम है। वेद और पुराणों में वर्णित है कि भगवान मद्महेश्वर की पूजा-अर्चना के बाद भगवान बूढा़ मद्महेश्वर की भी पूजा-अर्चना बेहद जरूरी है। तब ही यात्रा सफल मानी जाती है। शिव पुराण के केदारखण्ड मेंं बताया गया है कि उच्च हिमालयी भू-भाग में केदार भवन के दक्षिण भाग में तीन योजन की दूरी पर द्वितीय केदार मद्महेश्वर और बूढा़ मद्महेश्वर का तीर्थ विराजमान है। मद्महेश्वर ट्रैक का एक विडियो देखिये ...