image: Brave story of devendra singh negi

देवभूमि का देवदूत...एक उत्तराखंडी जिसने अपने दम पर 27 लोगों की जान बचाई

Aug 6 2018 3:22PM, Writer:कपिल

ये बात तो सच है कि उत्तराखंडियों का दिल बड़ा है। मुसीबत के वक्त लोगों की मदद करने में उत्तराखंडी हर वक्त आगे रहते हैं। हमारी कोशिश है कि हम आपको कुछ ऐसे ही लोगों की कहानी बताएं, जिन्होंने अपने हौसले के दम पर देवदूत बनने का काम किया। तो चलिए आज आपको देवेंद्र सिंह नेगी की कहानी से रू-ब-रू करवाते हैं। ये वो शख्स हैं, जिन्होंने भयंकर आपदा के बीच 27 लोगों की जान बचा ली। 28 जून साल 2011..ये वो दिन था जब आपदा के बीच फंसे 27 लोगों के लिए देवेंद्र सिंह नेगी देवदूत बन गए। उत्तरकाशी के रहने वाले देवेंद्र सिंह नेगी पेशे से सरकारी वकील हैं। वो देहरादून से अपने परिवार के साथ उत्तरकाशी जा रहे थे। धरासू बैंड के पास नालूपानी में भयंकर बारिश और भूस्खलन हो रहा था। इसी भूस्खलन के बीच उदयपुर से आए यात्रियों की कुछ गाड़ियां फंस गई थी।

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प्रशासन से लेकर अधिकारियों को फोन किया गया लेकिन वहां कोई नहीं पहुंचा। रात का घनघोर अंधेरा और दोनों तरफ से भूस्खलन के बीच फंसी 27 जिंदगियां। इसी आपदा के बीच देवेंद्र सिंह नेगी के मित्र सुनील राणा भी फंस गए। जब कोई भी मदद नहीं मिली तो सुनील राणा ने देवेंद्र सिंह नेगी को फोन किया। मामले की संवेदनशीलता को समझते हुए देवेंद्र सिंह नेगी ने एक मिनट का भी वक्त नहीं गंवाया। सबसे पहले देवेंद्र सिंह नेगी मौके पर पहुंचे। अब मुसीबत ये थी कि आखिर इन सभी लोगों को कैसे बचाएं ? यहां मासूम बच्चे भी थे, बुजुर्ग भी थे और रोती-बिलखती महिलाएं भी थीं। सबसे बड़ी चुनौती इन सभी को बचाने की थी। लेकिन हिम्मत और हौसला देखिए...पहाड़ से गिरते पत्थरों के बीच देवेंद्र सिंह नेगी भी वहीं पहुंच गए, जहां लोग फंसे थे।

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एक एक कर लोगों को बचाने की मुहिम शुरू हो गई। इस बीच देवेंद्र सिंह नेगी के एक और दोस्त रमेश मेहरा भी मौके पर पहुंच गए। अगर इस काम में जरा सी भी देरी होती तो वो 27 लोग शायद इस दुनिया में नहीं होते। जब सब यात्रियों को बचाया गया, तो एक और मुसीबत सामने आई। उसी भूस्खलन के बीच एक महिला के बिलखने की आवाज आने लगी। गौर से देखा तो वो महिला खाई में लटकी हुई थी। देवेंद्र सिंह नेगी ने रस्सी ढूंढी लेकिन नहीं मिली, इसलिए उन्होंने एक महिला की साड़ी मांगी। ये साड़ी लेकर वो खुद एक बार फिर से उस जगह पहुंच गए, जहां पत्थरों की बारिश हो रही थी। साड़ी के जरिए उस महिला को भी बचा लिया गया। ऐसे दिलेर और जिगर वाले हैं देवेद्र सिंह नेगी। जिन लोगों की जान बची, उन्होंने नम आंखों से देवेंद्र सिंह नेगी को दुआएं दी।

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कुछ यात्रियों ने उन्हें ईनाम देने की कोशिश भी की, लेकिन देवेंद्र सिंह नेगी का कहना था कि ये मेरा फर्ज है। उन्होंने यात्रियों से कुछ भी नहीं लिया मौके से तीन किलोमीटर दूर एक होटल में ले गए। आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि उस भूस्खलन की वजह से यात्रियों का गाड़ियां गहरी खाई में गिर गई थी। गर्व होता है कि ऐसे लोगों पर, जो जानते हैं कि किसी की जिंदगी की कीमत क्या होती है। राजस्थान से आए इन यात्रियों ने वापस जाकर उत्तरकाशी के जिलाधिकारी को पत्र लिखा था कि देवेंद्र सिंह नेगी और उनके साथियों का नाम वीरता पुरस्कार के लिए भारत सरकार को भेजें। शर्म तो इस बात पर आती है कि प्रशासन ने इस घटना के तीन साल बाद देवेंद्र सिंह नेगी और उनके साथियों का नाम वीरता पुरस्कार के लिए आगे भेजा।


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