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उत्तराखंड में 877 करोड़ का 'गड़बड़झाला', कैग की रिपोर्ट में हुए 7 बड़े खुलासे

जब बाढ़ कही खेत को खाने लगे, तो उम्मीद ही क्या करें। उत्तराखंड के लिहाज से भी ऐसा ही कुछ हुआ है। ये हम नहीं बल्कि कैग की रिपोर्ट में ही बड़े खुलासे किए गए हैं।
Sep 21 2018 9:24AM, Writer:कपिल

उत्तराखंड के लिए एक कहावत कही जा सकती है। ‘यहां बाढ़ ही खेत को खा गई। ’ ऐसा हम क्यों कह रहे हैं, जब आप भी जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे। भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक यानी कैग की ताजा रिपोर्ट में बड़ा खुलासा किया गया है। ये सब कुछ सरकारी मशीनरी की लापरवाही से ही हुआ है। कैग की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि उत्तराखंड के खजाने को सरकारी मशीनरी की लापरवाही ने 877 करोड़ रुपये की चोट पहुंची है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग ने साल 2012-13 से 2016-17 के दौरान उत्तराखंड सरकार के विभागों में 877.65 करोड़ रुपये का गड़बड़झाला पकड़ा है। इन विभागों के बारे में भी हम आपको जानकारी दे रहे हैं। कैग ने इन तमाम मामलों को अनियमितता माना है और इस पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

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कैग ने कहा है कि उत्तराखंड में शराब फैक्ट्रियों की वजह से पर्यावरण के नियमों का घोर उल्लंघन किया गया। इस मामले में ऐसी शराब फैक्ट्रियों से 346 करोड़ रुपये की पेनल्टी वसूली जानी थी। हैरानी की बात ये है कि आबकारी विभाग के अधिकारियों ने कुछ नहीं किया और इससे राजस्व को करोड़ों का नुकसान हो गया। इसके साथ ही बताया गया कि मोटर वाहन, वाणिज्यकर, स्टाम्प खनन एवं वन विभागों को कुल 335 करोड़ के राजस्व का गड़बड़झाला हुआ है।
मूल्यवर्धित कर में 44 करोड़ का गड़बड़झाला
खनन एवं खनिकर्म में 92 करोड़ का गड़बड़झाला
वन में 36 करोड़ का गड़बड़झाला
वाहनों पर कर में 109 करोड़ का गड़बड़झाला

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रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड की वजह से पिटकुल को 132 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
इसके अलावा लोनिवि में पकड़ा पांच करोड़ का घपला
बिजली बिलों के बकाये में 1420 करोड़ रुपये का गड़बड़झाला पकड़ा गया।
अधिकारियों की लापरवाही की वजह से खनन विभाग को 9 लाख का नुकसान हुआ
ऐसे ही वन विकास निगम को 18 लाख का नुकसान
गंगा नदी की स्वच्छता के लिए 25 से 58 फीसदी बजट इस्तेमाल नहीं हुआ
132 ग्राम पंचायतों में 265 गांवों को खुले में शौच से मुक्ति का दावा गलत निकला
स्वास्थ्य विभाग में 1.25 करोड़ का गबन
इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि योजनाओं के नाम उत्तराखंड में अधिकारियों ने किस तरह से लोगों और सरकार को चूना लगाया।


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