image: Woman dies as trolley falls in river in mori uttarkashi

उत्तरकाशी का अँधा प्रशासन ! नदी पार करते समय ट्रॉली का तार टूटने से महिला की मौत

उत्तराखंड में कई जगहों पर लोग अभी भी जोखिम भरे रास्ते से नदी पार करने को मजबूर हैं... उत्तरकाशी में मोरी गांव की एक महिला नदी पार करते समय पिलर से बंधा तार टूटने से नदी में गिर गयी। बेपरवाह प्रशासन की भेंट एक और जान चढ़ गयी...
Oct 11 2018 10:32AM, Writer:कपिल

उत्तराखंड में आज भी कई इलाके ऐसे है जहां लोग अपनी जान जोखिम में डालकर उफनती नदियों को पार करते है। कई बार इस दौरान दर्दनाक हादसे भी हो जाते है। ताजा मामला उत्तरकाशी के मोरी गांव का है। गांव के पास टौंस नदी बहती है जिसे पार करते वक्त एक युवती की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि 19 साल की युवती जब नदी के आरपार पिलर से बंधे तार के सहारे नदी पार कर रही थी लेकिन उसी वक्त तार के टूटने से वो नदी के तेज बहाव में गिर गई जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई। मृतक युवती का शव घटना स्थल से करीब दस किमी दूर हनोल के पास से बरामद कर लिया गया। हादसे के बाद अस्थायी तौर पर तार के सहारे नदी पार करने की व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं। आखिर कब तक लोगों को इस तरह से जान जोखिम में डालकर नदी पार करनी होगी।

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मोरी के थानाध्यक्ष दीप कुमार ने बताया कि मोरी गांव की गुर्जर बस्ती से 19 साल की हसीना नाम की युवती तार के सहारे टौंस नदी पार कर मोरी बाजार स्थित अपनी दुकान में आ रही थी। इसी दौरान तार टूटने से वह टौंस नदी में बह गई। काफी खोजबीन के बाद उसका शव घटना स्थल से करीब दस किमी दूर हनोल के पास से बरामद हुआ। इस हादसे के बाद सवाल उठना लाजमी है कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले सीमांत जनपद उत्तरकाशी में आज भी सरकार सुरक्षित आवाजाही के इंतजाम क्यों नहीं कर पायी है। जिले में आपदा से पुल-पुलिया बहने के कारण नौ स्थानों पर ग्रामीण नदियों के आरपार तार के सहारे झूल रही ट्रॉलियों के सहारे आवाजाही करने को मजबूर हैं।

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खस्ताहाल में पहुंच चुकी ट्रॉलियों में सफर करने वाले लोगों के लिए अंगुलियां कटने जैसे हादसे आम हो चुके है। जबकि मोरी के सांद्रा सल्ला गांव में ट्रॉली से गिरने के कारण एक बच्ची की मौत हो चुकी है। आपको बता दे कि उत्तरकाशी में गंगा, यमुना और टौंस जैसी बड़ी नदियों के साथ ही सहायक नदियों और गाड-गदेरों की भरमार है। जिले के अधिकांश गांवों तक पहुंचने के लिए इन गाड-गदेरों को पार कर जाना पड़ता है। इसके बावजूद प्रशासन क्यों नहीं हरकत में आता है और इस तरफ कोई ठोस और सुरक्षित कदम उठाता है। क्यों नहीं लोगों के आवाजाही के लिए पक्की पुलियाओं का निर्माण किया जाता है। कई दूरस्थ इलाकों में तो लोग लकड़ी के अस्थायी पुलों के सहारे जोखिम भरे रास्ते से आवाजाही करने को मजबूर है। इन पुलों की भी हालत यह है कि हर साल बारिश के वक्त उफनती नदियों और गदेरों के पानी में यह बह जाते है।


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