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दुनियाभर को जीने के लिए ऑक्सीजन दी, अब इसकी कीमत मांगेगा उत्तराखंड !

दुनियाभर को जीने के लिए जीवनदायी ऑक्सीजन देने वाले उत्तराखंड को आजतक क्या मिला ? लेकिन अब उत्तराखंड इसकी कीमत मांगेगा।
Oct 22 2018 5:32AM, Writer:रश्मि पुनेठा

ऑक्सीजन...जिसके बिना हम जीवन की कल्पना तक नहीं कर सकते है। ऑक्सीजन जिसके ना होने पर दुनिया खत्म हो जाएगी। इसके बावजूद हम लगातार पेड़ों की कटाई कर रहे है। वही उत्तराखंड हमेशा से ही पर्यावरण संरक्षण के मामले में आगे रहा है। हिमालयी क्षेत्र का उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है, जिसने अपने हितों को दरकिनार करते हुए देश के फायदे को सबसे आगे रखा है। लेकिन आजतक राज्य को इसका फायदा नहीं मिल पाया। इसलिए अब उत्तराखंड केंद्र सरकार के सामने ऑक्सीजन की कीमत के लिए खड़ा होगा। वित्त आयोग ने इन तमाम बातों को लेकर उत्तराखंड की आर्थिक प्रगति में पेश आ रही मुश्किलों के समाधान भरोसा दिया है। ये बात सब जानते हैं कि खुद तकलीफें झेलकर पर्यावरण संरक्षण के जरिये देश की आबोहवा को शुद्ध और सांस लेने लायक हवा देने में उत्तराखंड का अहम योगदान है।

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आपको जानकर ताज्जुब होगा कि उस वक्त उत्तराखंड करीब तीन लाख करोड़ की पर्यावरणीय सेवाएं दे रहा है। इसमें अकेले यहां के जंगलों का योगदान 98 हजार करोड़ के लगभग है। 71.05 फीसदी वन भूभाग वाले उत्तराखंड में जंगलों को सहेजकर पर्यावरण संरक्षण करना यहां की परंपरा का हिस्सा है। यही वजह भी है कि यहां के जंगल देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित हैं। कुल भूभाग का लगभग 46 फीसद फॉरेस्ट कवर इसकी तस्दीक भी करता है। यही नहीं, गंगा-यमुना जैसी जीवनदायिनी नदियों का उद्गम भी उत्तराखंड ही है। हर साल ही बारिश के दौरान बड़े पैमाने पर यहां की नदियां अपने साथ करोड़ों टन मिट्टी से निचले इलाकों को उपजाऊ माटी देती आ रही है। उत्तराखंड सालाना कितने की पर्यावरणीय सेवाएं दे रहा है। इसे लेकर राज्य सरकार ने आकलन कराने का निश्चय किया।

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नियोजन विभाग के जरिये इको सिस्टम सर्विसेज को लेकर सालभर तक ये रिसर्च की गई। इस अध्ययन से अनुमान लगाया गया कि राज्य के वनों से ही अकेले 98 हजार करोड़ रुपये की सालाना पर्यावरणीय सेवाएं मिल रही हैं। जंगलों के साथ ही नदी, मिट्टी समेत अन्य बिंदुओं को भी शामिल कर लिया जाए तो इन सेवाओं की कीमत लगभग तीन लाख करोड़ से अधिक बैठेगा। गौरतलब है कि इन पर्यावरणीय सेवाओं की वजह से राज्य को कर्इ मुश्किलों से होकर गुजरना पड़ रहा है। वन कानूनों की बंदिशों के चलते कर्इ परियोजनाएं अटकी पड़ी है। इन सब के बीच सवाल यही उठता है कि देश को शुद्ध हवा तो मिल जाएगी, लेकिन उत्तराखंड के विकास में अहम भूमिका निभाने वाली जल विद्युत परियोजनाओं का क्या? राज्य में करीब चौबीस जल विद्युत परियोजनाएं अधर में हैं। दस परियोजनाएं अकेले भागीरथी इको सेंसिटिव जोन की हैं।

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उत्तराखंड भले ही वन संरक्षण के मामले में आगे हो, लेकिन ये बात भी सच है कि वन संरक्षण का खामियाजा उसे बड़ी कीमत चुकाकर भी भुगतना पड़ रहा है। पर्यावरणीय सेवाओं के लिए भले ही उत्तराखंड की हमेशा तारीफ हुई हो लेकिन इसके नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए कुछ भी नसीब नहीं हुआ है और राज्य का ग्रीन बोनस के लिए इंतजार सालों से खत्म नहीं हो पाया है। ऐसे में किस तरह से पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाया जाए ये चुनौती अब भी बनी हुर्इ है। उत्तराखंड को 14वें वित्त आयोग से मिली मायूसी दूर होने के संकेत हैं। ऐसा हुआ तो साल 2020 से 2025 तक पांच सालों के लिए केंद्र सरकार से अधिक मदद राज्य की झोली में गिरेगी। 15वें वित्त आयोग से मदद का भरोसा दिया गया है और देखना है कि आगे क्या होता है।


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