पहाड़ का सपूत शहीद..बहनों की शादी करवानी थी, गांव में घर बनाना था..वो चला गया!
23 साल के उस बच्चे की आंखें कई सपने देख रही थीं लेकिन सारे सपने एक ही पल में चकनाचूर हो गए। दिवाली पर घर आने का वादा कर वो शहीद हो गया।
Oct 27 2018 6:13AM, Writer:आदिशा
हमारे देश के वीर जवान, गरीब घरों से निकलकर भारतीय सेना की वर्दी पहनने वाले वो बच्चे, जिनकी आंखें भी सपने देखती हैं। ऐसे ही कुछ सपने उत्तराखंड शहीद राजेन्द्र सिंह बुंगला ने भी देखे थे। अभी दो बहनों की शादी करवानी थी, गांव में नया मकान बनवाना था, दिवाली पर घर आना था...ना जाने भविष्य के लिए उस वीर सपूत ने कितनी योजनाएं बनाई थीं। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट विकासखंड के बडेना (बुंगली) के इस वीर शहीद ने सर्वोच्च बलिदान देकर साबित कर दिया कि देश के आगे कुछ भी नहीं। अनंतनाग हमले में शहीद हुए राजेंद्र की कहानी जानकर आपकी आंखें रो पड़ेंगी। कुछ दिन पहले ही राजेन्द्र ने अपने परिजनों से बात की थी। वो इस बार दिवाली पर घर आने वाला था। छुट्टी के लिए आवेदन भी कर दिया था।
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घर में खुशी का माहौल था कि दिवाली पर बेटा आ रहा है। देश के वीर सैनिक के परिवारों को वैसे भी ऐसे पल बहुत कम ही नसीब होते हैं। वो हर बार त्यौहारों में घर पर नहीं होते बल्कि सीमा पर ही होते हैं। ऐसे में इस बार की दिवाली राजेन्द्र के परिवार के लिए बेहद खास थी। राजेंद्र के घर आने की बाट जोह रहे परिजनों को शहादत की सूचना मिली। खुशियां मातम में बदल गई। राजेन्द्र का परिवार किन परिस्थियों में जी रहा है, जरा ये भी जानिए। घर में कमाने वाला कोई नहीं सिर्फ राजेन्द्र है। अब तक परिवार एक पुराने मकान में रह रहा था। राजन्द्र सेना में भर्ती हुआ, तो गाव में ही पिता ने नया मकान बनवाना शुरू कर दिया। राजेन्द्र हर महीने कुछ खर्च परिवार को भेजता और इसी से मकान बनेन का काम जारी रहता था। दुख इस बात का है कि वो अपने सपनों का घर भी नहीं देख पाएगा।
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राजेन्द्र की बड़ी बहन रेखा देवी की शादी हो चुकी है। छोटी बहन सीमा ने इंटर पास किया है और सबसे छोटी बहन पूजा 10वीं में पढ़ती है। राजेंद्र सिंह बुंगला ने दो दिन पहले ही अपने दोस्त पंकज सिंह बोरा से फोन पर बात की थी। अपने गांव का हाल पूछा, अपने परिवार का हाल पूछा और कहा कि इस बार दिवाली पर घर आ रहा हूं।राजेन्द्र पढ़ाई में होनहार रहा था। साइंस से इंटर पास किया और आर्मी में जाने का लक्ष्य तय किया। एक महीने पहले तक वो बरेली में पोस्टेड था। इसके बाद उसकी तैनाती जम्मू कश्मीर में हो गई।15 दिन पहले ही वो जम्मू कश्मीर पहुंचा था। जाने क्रूर काल ने किस कलम से राजेन्द्र की किस्मत लिखी? सारे सपने एक पल में ही ध्वस्त हो गए। परिवार का इकलौता कमाने वाला लड़का चला गया। देश के वीर सपूत को नमन। जय हिंद।