जय देवभूमि: चारधाम यात्रा के पहले ही हफ्ते में बना बड़ा रिकॉर्ड…ऐसा पहली बार हो रहा है
चारधाम यात्रा की शुरुआत हो चुकी है, और पहले हफ्ते में ही बड़ा रिकॉर्ड बना है। आप भी पढ़िए ये अच्छी खबर
May 16 2019 11:36AM, Writer:कोमल नेगी
आपदा के बाद यह पहला साल है, जब शुरुआत में ही चारधाम यात्रा ने अच्छी गति पकड़ ली है। बदरीनाथ-केदारनाथ धाम के कपाट खुले अभी एक हफ्ता ही हुआ है और चारधाम यात्रियों की संख्या 88 हजार के आंकड़े को पार गई है। पिछले कुछ सालों पर नजर डालें तो साल 2013 की आपदा के बाद साल 2014 में धामों के कपाट खुलने के एक हफ्ते बाद तक महज 9037 यात्री चारधामों के दर्शन के लिए पहुंचे थे। साल 2015 में ये आंकड़ा 14 हजार 541 था। साल 2016 में पहले हफ्ते में 80 हजार 923 यात्री धामों को रवाना हो चुके थे। वहीं वर्ष 2017 में 42 हजार 457 यात्री जबकि पिछले साल यानि 2018 में 18 अप्रैल को गंगोत्री-यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के एक सप्ताह बाद यह संख्या महज सात हजार 706 थी। इस बार 7 मई से लेकर 10 मई तक चारों धामों के कपाट खुल गए और एक सप्ताह में ही चारधाम यात्रियों की संख्या 88 हजार 692 तक पहुंच गई, जो एक नया रिकॉर्ड है। चारधाम यात्रा प्रदेश की आर्थिकी का आधार है, ऐसे में चारधाम यात्रा को लेकर जो शुरुआती नतीजे दिख रहे हैं वो उत्साह बढ़ाने वाले हैं। प्रदेश सरकार ने जिस तरह यात्रा को बेहतर बनाने की कोशिश की है, ये उसी का नतीजा है कि श्रद्धालु बिना किसी डर के उत्तराखंड आ रहे हैं। आने वाले दिनों में चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में और इजाफा होगा।
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चारधाम यात्रा शुरू हुए अभी कुछ ही दिन हुए हैं, लेकिन यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं में गजब का उत्साह देखने को मिल रहा है। शून्य तापमान और खराब मौसम के बावजूद अब तक हजारों लोग देवभूमि के चारधामों के दर्शन कर चुके हैं। अपने पहले सप्ताह में ही चारधाम यात्रा ने नया कीर्तिमान बनाया है, इस बार अब तक करीब 88 हजार यात्री चारधाम यात्रा के लिए रवाना हो चुके हैं, ये खुद में एक बड़ा रिकॉर्ड है।
साल 2013 में उत्तराखंड में आई आपदा के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के दर्शन के लिए आए हैं। साल 2013 में जब उत्तराखंड में आपदा आई थी तो इससे सबसे ज्यादा असर चारधाम यात्रा पर ही पड़ा था। आपदा के डर से श्रद्धालु उत्तराखंड आने में झिझक रहे थे। साल 2015 में हालात थोड़ा बेहतर हुए, श्रद्धालु एक बार फिर उत्साह से देवभूमि आने लगे, इससे आजीविका के स्त्रोत बढ़े साथ ही व्यवसायियों को भी राहत मिली।