देवभूमि के इस वैज्ञानिक को सलाम, ISRO के मिशन चंद्रयान में निभाई बड़ी भूमिका
चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. चंद्रमोहन किश्तवाल का अहम योगदान रहा है... उत्तराखंड के डॉ. चंद्रमोहन किश्तवाल के बारे में खास बातें पढ़िए..
Jul 23 2019 8:02PM, Writer:कोमल
इस वक्त भारत से जुड़ी जो खबर सबसे ज्यादा सुर्खियों में है वो है भारत का मून मिशन, जिसके तहत 22 जुलाई को चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया गया। इस मिशन की तस्वीरों ने हर हिंदुस्तानी का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। क्या आप जानते हैं कि इसरो की तरफ से लांच किए गए चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण से उत्तराखंड भी जुड़ा हुआ है। नैनीताल के रहने वाले 'चंद्र' के अहम योगदान की बदौलत ही मिशन मून आकार ले सका, सफलता का आकाश छू सका। उत्तराखंड के इस होनहार वैज्ञानिक का नाम है डॉ. चंद्रमोहन किश्तवाल, जो कि इसरो में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए इसरो ने जो चंद्रयान-2 लांच किया है, उसके सफल प्रक्षेपण में वैज्ञानिक डॉ. चंद्रमोहन किश्तवाल का अहम योगदान है। डॉ. चंद्रमोहन नैनीताल के रहने वाले हैं। उनका लालन-पालन और एजुकेशन नैनीताल में ही हुई। इस वक्त वो इसरो के अहमदाबाद स्थित एटमोस्फियरिक ओसियन सेंटर में ग्रुप निदेशक हैं।
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डॉ. चंद्रमोहन किश्तवाल की उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त है, उन्होंने अपने काम से उत्तराखंड को गौरवान्वित किया है। मिशन मून से पहले डॉ. किश्तवाल साल 2014 के मंगल मिशन में भी अहम भूमिका निभा चुके हैं। भारत के मंगल मिशन को सफल बनाने में डॉ. चंद्रमोहन का अहम योगदान रहा। डॉ. चंद्रमोहन किश्तवाल मूलरूप से अल्मोड़ा के सल्ट के रहने वाले हैं। उनके पिता सीताराम किश्तवाल सल्ट अल्मोड़ा में कोऑपरेटिव में कार्यरत रहे। डॉ. किश्तवाल की प्राइमरी एजुकेशन भारतीय शहीद सैनिक स्कूल से हुई। बाद में उन्होंने कुमाऊं यूनिवर्सिटी से बीएससी की और साल 1982 में केमेस्ट्री में एमएससी की। पढ़ाई में वो हमेशा अव्वल रहे। केमेस्ट्री में एमएससी की परीक्षा उन्होंने फर्स्ट डिवीजन में पास की। एमएससी करने के बाद वो दिल्ली चले गए और आईआईटी दिल्ली से एस्ट्रोफिजिक्स में पीएचडी की। बाद में उन्हें इसरो के अहमदाबाद केंद्र में काम करन का मौका मिला। डॉ. किश्तवाल का देश से गहरा जुड़ाव रहा है, यही वजह है कि विदेशों में काम के अच्छे ऑफर मिलने के बावजूद वो देश के लिए काम करते रहे हैं। इससे पहले डॉ. किश्तवाल को तीन साल तक अमेरिका और जापान में काम करने का मौका मिला। उन्हें 1 करोड़ प्रतिवर्ष का सालाना पैकेज मिल रहा था। पर देश प्रेम के चलते 25 साल पहले उन्होंने ये ऑफर ठुकरा दिया और स्वदेश लौट आए। डॉ. किश्तवाल शुरू से ही मून मिशन से जुड़े रहे। वैज्ञानिक डॉ. किश्तवाल को एटमोस्फियारिक विज्ञान के साथ ही साइक्लोनिक विज्ञान में भी विशेषज्ञता हासिल है। मून मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देने के साथ ही उन्होंने देश के साथ-साथ प्रदेश का सिर भी गर्व से ऊंचा कर दिया है।