देवभूमि का हिमांशु..विदेश की नौकरी छोड़कर घर लौटा, अब विदेशों में सप्लाई होती हैं सब्जियां
हिमांशु विदेश में अच्छी तनख्वाह पा रहे थे, पर घर-गांव का मोह उन्हें पहाड़ खींच लाया, आज वो गांव में ऑर्गेनिक सब्जियों-दालों की खेती करते हैं...
Nov 4 2019 6:12PM, Writer:कोमल
राज्य सरकार पलायन को पछाड़ने, रिवर्स पलायन को प्रोत्साहन देने की बात तो कर रही है, लेकिन ये इतना आसान नहीं है। शहर की सुविधा और कंफर्ट जोन से बाहर निकलने के लिए हिम्मत चाहिए। और ऐसा कुछ ही लोग कर पाते हैं। ऐसे ही लोगों में से एक हैं हल्द्वानी के रहने वाले हिमांशु जोशी। हिमांशु विदेश में नौकरी करते थे, अच्छी तनख्वाह पा रहे थे पर पहाड़ का प्यार उन्हें गांव खींच लाया। आज हिमांशु ऑर्गेनिक खेती करते हैं। उनके द्वारा जैविक रूप से उगाई गई सब्जियां-दालें सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी सप्लाई की जाती हैं। हिमांशु के पिता डॉ आरसी जोशी वैज्ञानिक हैं। 2002 में हिमांशु नौकरी के लिए विदेश चले गए थे। 14 साल तक दुबई, मस्कट में टेलीकॉम कंपनी में आईटी हेड के तौर पर काम करते रहे। बात साल 2015 की है। उनके पिता की तबीयत अचानक खराब हो गई। साल 2016 में हिमांशु वापस उत्तराखंड लौट गए और यहीं कोटाबाग के पतलिया के कूशा नबाड़ में 14 बीघा जमीन पर खेती करने लगे।
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हिमांशु ने बंजर जमीन को उपजाऊ बनाया। वहां अमरूद, आम, लीची, बेर और अंजीर के पौधे लगाए। खेत क्योंकि जंगल के पास था, इसीलिए इसे नाम दिया फॉरेस्ट साइड फॉर्म। फलों के साथ-साथ सब्जियों और दालों की भी खेती करने लगे। पॉली क्रॉपिंग मॉडल की मदद से वो अलग-अलग तरह की खेती एक ही जगह करने में सफल रहे। आज हिमांशु की उगाई ऑर्गेनिक सब्जियां-दालें विदेश तक भेजी जाती हैं। हिमांशु मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए सिर्फ गौमूत्र का इस्तेमाल करते हैं। हिमांशु कहते हैं कि शुरू-शुरू में परिवारवाले उनके फैसले का विरोध करते थे। हर किसी को पढ़े-लिखे इंसान का खेती करना पागलपन लगता था, पर अब वो मेरी मदद करने लगे हैं। हालांकि उद्यान विभाग की तरफ से मुझे कोई मदद नहीं मिली। हिमांशु कहते हैं कि रिवर्स पलायन पर बातें करने से बेहतर है कि सरकार स्वरोजगार के इच्छुक युवाओं की मदद करे ताकि वो पहाड़ में रहकर ही काम कर पाएं।